Upbhokta adhikar diwas ki yatharthata (on National Consumer Right Day-24 December) - सुस्वागतम्
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Upbhokta adhikar diwas ki yatharthata (on National Consumer Right Day-24 December)

(24 दिसम्बर- राष्ट्रीय उपभोक्ता अधिकार दिवस)
उपभोक्ता अधिकार दिवस की यथार्थता
निर्भय कर्ण
‘‘ग्राहक हमारे परिसर में बहुत ही महत्वपूर्ण अतिथि होता है। वह हम पर आश्रित नहीं होता बल्कि हम उस पर निर्भर होते हैं। वह हमारे काम में रूकावट नहीं होता है- वह तो इसका उद्देश्य होता है। हम उसकी सेवा करके उस पर कोई एहसान नहीं कर रहे बल्कि वह हमें सेवा का मौका देकर हम पर एहसान कर रहा है।’’ गांधीजी के इस कथन को सरासर आज के परिप्रेक्ष्य में नकारा जा रहा है। मानों आज लगता है कि बाजार में ग्राहक कुछ भी नहीं है बल्कि दुकानदार, रिटेलर ही सर्वेसर्वा हैं। देखा जाए तो उपभोक्ता को हर स्तर पर ठगा जाता है। सात दिनों के भीतर काले रंग को गोरा करने या मोटे व्यक्ति को छरहरा बनाने जैसे झूठे और भ्रामक वायदे करने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं की भावनाओं के साथ तो खिलवाड़ कर ही रही हैं, साथ ही कठोर परिश्रम से अर्जित धन का दोहन भी कर रही हैं। आर्थिक गतिविधियों के क्रियान्वयन में उपभोक्ताओं का असीम महत्व है और इस सत्यता को गांधी जी ने भी स्वीकारा था।
कई कानून बनने के बावजूद भी देष में 93 फीसदी उपभोक्ता अपनी शिकायत उपभोक्ता फोरम में दर्ज नहीं कराते। देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता है चाहे उनकी आमदनी और सामाजिक स्थिति कुछ भी हो। चूंकि प्रत्येक उपभोक्ता को उत्पाद के बारे में सुरक्षा पाने, चुनने व उसके बारे में सुने जाने का अधिकार होता है। इसके बावजूद हर उपभोक्ता अपनी जिंदगी में उत्पाद को लेकर कम से कम एक बार तो अवश्य ही ठगा जाता है और न जाने कब तक ठगे जाते रहेंगे। पैसों की असली अहमियत क्या होती है, यह मेहनतकश लोग ही सही-सही व्याख्या कर पाते हैं जो दिन-रात मजदूरी करके अपने परिवार का पेट भरता है। वह कोई भी उत्पाद खरीदते समय काफी पूछताछ करता है चाहे वह उत्पाद नमक ही क्यों न हो? लेकिन अन्य वर्गों के द्वारा खरीदने की बात जब आती है तो वह ऊंची कीमत के उत्पाद को सर्वोत्तम मानकर नाममात्र पूछताछ के बाद क्रय करता है।
उपभोक्ता अधिकार दिवस का मतलब होता है उपभोक्ता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए मनाया जाने वाला दिवस। जागरूक उपभोक्ता न केवल शोषण से अपनी सुरक्षा करता है बल्कि समूचे निर्माण और सेवा क्षेत्र में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही को भी प्रेरित करता है। प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता है। यदि उसके हितों की रक्षा न हो रही हो तो वह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अधीन उसे प्राप्त कर सकता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का बनना भारत में उपभोक्ता आंदोलन में बेहद महत्वपूर्ण मील का पत्थर रहा है। इस अधिनियम ने उपभोक्ता अधिकारों के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जिसके समानांतर संभवतः दुनिया में और किसी को नियत नहीं किया जा सकता। यह कानून निजी, सार्वजनिक या सहकारी सभी क्षेत्रों में, जब तक कि केंद्र सरकार विशेष रूप से कोई छूट न दे, सभी सामानों और सेवाओं पर लागू होती है। यह अधिनियम उपभोक्ताओं के सभी अधिकारों को प्रतिस्थापित करता है जो अंतर्राष्ट्रीय रूप से स्वीकृत है। अधिनियम के अनुसार, उपभोक्ता अधिकारों को प्रोत्साहन और संरक्षण के लिए केंद्र, राज्य और जिला स्तरों पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदें स्थापित की गई हैं। ये अधिकार इस प्रकार हैं- सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अध्किार, चयन करने का अधिकार, सुनवाई का अधिकार, क्षतिपूर्ति मांगने का अधिकार, उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।
अफसोस की बात यह है कि अंधाधूंध मुनाफा कमाने की चाह में व्यापारी एवं निर्माता आमजन की संवेदनाओं और पैसे की परवाह नहीं करते। यही नहीं वे उपभोक्ताओं की जान से खेलने तक से नहीं हिचकते। तमाम खाद्य पदार्थ जिनमें दूध ही नहीं, बल्कि दवा तक में धड़ल्ले के साथ मिलावट की जा रही है। बीमा, दूरसंचार, विमान एवं रेल सेवा, बैंकिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि सेवाओं का उपयोग अधिकांश लोग करते हैं। इन तमाम क्षेत्रों में कंपनियां बड़े पैमाने पर धांधलियां कर रही हैं। बहुत सी कंपनियां क्रेडिट कार्ड धरकों से मनमाना शुल्क वसूलने, आवासीय ऋणों पर अधिक ब्याज दर लगाने, प्री-पेड और पोस्ट-पेड फोन कनेक्शनों पर अधिकाधिक धन वसूलने जैसे अनुचित व्यवहार में लिप्त हैं। जागरूकता की कमी और समयाभाव के कारण उपभोक्ता अपने अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाते। वे इस शोषण को अपनी नियति मान लेते हैं। 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण का वैधानिक प्रयास है। यह कानून इसलिए बनाया गया, ताकि कम से कम औपचारिकताओं और कागजी कार्रवाई में जल्दी और कम खर्चीला न्याय सुलभ हो सके। इस कानून के दायरे में वस्तुओं और सेवाओं दोनों को ही सम्मिलित किया गया है और यह दोषपूर्ण वस्तुओं के अलावा दोषयुक्त सेवाओं से संबंधित मामलों के लिए भी मुकदमा चलाने का अधिकार उपभोक्ता को देता है। उपभोक्ता संरक्षण कानून में जिस उपभोक्ता न्याय प्रणाली की परिकल्पना की गई है, उसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को वकीलों की सहायता के बिना अपनी शिकायत के निवारण में मदद करना है, परंतु वास्तविकता में ऐसा नहीं हो रहा है। सुनवाई में लगातार स्थगन, राज्य सरकारों द्वारा इन अदालतों के अध्यक्षों तथा सदस्यों के पद भरने में अनावश्यक देरी और तकनीकी अड़चनों के कारण न्याय प्रक्रिया की धीमी गति ने उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने में वह भूमिका नहीं निभाई जो अपेक्षित है। उपभोक्ता संरक्षण कानून से परे एक तथ्य और भी है। कईयों ऐसे लोग हैं, जिन्हें पता ही नहीं कि उपभोक्ता अधिकार क्या होते हैं इनमें उच्च शिक्षित लोग भी शुमार हैं। दरअसल कमी कानून में भी है और प्रशासनिक व्यवस्था में भी। इसलिए दोनों के बीच संतुलन होना काफी आवष्यक है।
उपभोक्ताओं की समस्याओं का आलम यह है कि उत्पाद को लेकर उन्हें न तो उगलते बनता है और न ही निगलते। बाजार में जो उत्पाद उपलब्ध है, उन्हीं को खरीदना लोगों के लिए मजबूरी बन गया है लेकिन हमें इतना मजबूर भी होने की जरूरत नहीं है और अपने आप को बाजार के हवाले कर देने की। मौजूदा दौर में बाजार में उत्पाद की पर्याप्त उपलब्धता लोगों को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में कोई एक चुनने का अवसर प्रदान करती है। हमें घटिया गुणवत्ता वाली उत्पादों का बहिष्कार कर कंपनियों को अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए विवश करना होगा। इसके अलावा, किसी उत्पाद की गुणवत्ता में पाए जाने पर हम सीधे उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकते हैं। जहां पर इन शिकायतों का निपटारा होता है और उचित न्याय मिलने की संभावना रहती है।
उपभोक्ताओं के अधिकारों के हनन पर नियंत्रण के लिए उपभोक्ता संगठनों और जागरूक समाज के सहयोग से नियमों का सख्ती से पालन कराया जाना एक सकारात्मक कदम हो सकता है। उपभोक्ता संरक्षण कानून को प्रभावकारी बनाने तथा अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि इन अदालतों को कम खर्चीला, सरल तथा तीव्र न्याय देने वाला बनाया जाए, अन्यथा उपभोक्ताओं का विश्वास इस व्यवस्था से उठ जाएगा और यह किसी के हित में नहीं होगा। उपभोक्ताओं की जागरूकता के स्तर को किसी देश की प्रगति का सूचक माना जा सकता है, परंतु यह जागरूकता तभी सार्थक होगी, जब उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार सक्रिय भूमिका निभाएगी।
जागरूक उपभोक्ता न केवल षोशण से अपनी सुरक्षा करता है बल्कि समूचे निर्माण और सेवा क्षेत्र में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रेरित करता है। उपभोक्ताओं की जागरूकता के स्तर को किसी देश की प्रगति का सूचक माना जा सकता है परंतु यह जागरूकता तभी सार्थक होगी जब उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार के साथ-साथ आम नागरिक भी सक्रिय भूमिका निभाए।


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