Teji se Pair Pasarta CANCER (4 February- WORLD CANCER DAY) - सुस्वागतम्
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Teji se Pair Pasarta CANCER (4 February- WORLD CANCER DAY)




                               तेजी से पैर पसारता कैंसर

                                    


निर्भय कर्ण

विश्व कैंसर दिवस (4 फरवरी) दुनिया की आबादी को कैंसर के विरूद्ध लड़ने के लिए एकजुट करती है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य ‘‘कैंसर के बारे में लोगों को जागरूक और शिक्षित करके इससे लाखों जिंदगी को बचाना’’ है। इस वर्श के विश्व कैंसर दिवस का टैगलाइन है ‘‘डीबंक मिथ्स’’ यानि की कैंसर से संबंधित मिथकों को खत्म करना। मिथक यानि की लोगों में बनी गलत धारणाएं यानि की कैंसर के बारे में फैली झूठी अफवाहों को खत्म करना ही इस कैंसर दिवस का उद्देश्य है। वैसे तो कैंसर की रोकथाम के लिए दुनिया भर में कई सारी योजनाएं कार्यरत हैं लेकिन तमाम योजनाएं एवं प्रयासों के बावजूद इस बीमारी का कहर सभी जगहों पर खासकर विकसित देशों में सबसे ज्यादा होता है जबकि विकासशील देशों में यह बहुत तेजी से अपना पैर पसार रही है। जो देश जितनी तेजी से तरक्की कर रहा है वहां कैंसर उतनी ही तेजी से फैल रही है।
चीन में सैकड़ों गांव कैंसर के गढ़ में तब्दील हो चुके हैं। 2013 तक चीन ने अपने यहां 241 गांवों को कैंसर विलेज के रूप में चिंहित किया था जबकि पर्यावरणविदों का अनुमान है कि लगभग 459 गांव कैंसर के कहर से कराह रहे हैं। यहां पर हर चार में से एक चीनी कैंसर की बीमारी से मरता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में इस बीमारी से 7.6 करोड़ लोग मौत के काल में समा जाते हैं जिसमें 4 लाख लोग समय(30-69 वर्ष) से पहले ही मर जाते हैं। यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग की कैंसर रजिस्ट्री रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में देश में कैंसर के 10 लाख से अधिक नए मामले आए हैं। इसमें सबसे ज्यादा 27 फीसदी मामले तंबाकू से होने वाले कैंसर के हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं में स्तन कैंसर और पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर बढ़ा है।

इस बीमारी के मामले में यह तथ्य चैंकाने वाला है कि लोग सबसे ज्यादा फेफड़ों के कैंसर से पीडि़त होते हैं। अब यह कम उम्र में बढ़ने लगा है। 25-34 आयु वर्ग में यह कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक ईयू में कैंसर पीडि़तों में हर 10वां मरीज फेफड़ों के कैंसर से पीडि़त है। वहीं महिलाओं में पूरी दुनिया में 14 लाख मामले स्तन कैंसर के होते हैं। हर साल भारत में ही 17 प्रतिशत महिलाओं की मृत्यु सर्वाइकल कैंसर की वजह से हो जाती है।

एक तरफ तो विकासशील देश विकसित देश बनने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं, दूसरी तरफ विकसित देश भी अपने आप को अत्यधिक सशक्त बनाने के लिए तेजी से प्रयास कर रहे हैं जिससे कि कोई उनका मुकाबला कर सके। इस अंधी दौड़ में पर्यावरण को नकारने में कसर नहीं छोड़ते जो मानव को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाता है। चीन में कैंसर के मामले के बढ़ने के पीछे चीनी पर्यावरण मंत्रालय औद्योगिक विकास को कारण मानता है। औद्योगिक विकास की आड़ में पर्यावरण की काफी अनेदखी की जाती रहती है। उद्योगों से जहरीले तत्वों और रसायनों के उत्पादन इस्तेमाल से पर्यावरण बुरे तरीके से प्रभावित हो रहा है जिसमें वायु और जल प्रदूषण सबसे प्रमुख है।

कैंसर के मुख्य कारण की बात करें तो उसमें प्रदूषण, तेजी से बढ़ती जनसंख्या, परिवर्तनीय जोखिम कारकों (ध्रुम्रपान, पश्चिमी आहार और शारीरिक निष्क्रियता) में वृद्धि, इलाज का संक्रमण प्रमुख है। लोगों द्वारा शराब एवं तंबाकू उत्पाद (सिगरेट, बीड़ी, अन्य) का सेवन कैंसर का कारण है जिसमें फेफड़ों का कैंसर जटिल है।
 
इलाज के लिहाज से देखा जाए तो फेफड़ें का कैंसर सबसे महंगी बीमारी है। इस बीमारी पर सालाना करीब 10,458 अरब रूपए खर्च आता है। यह बिल्कुल सत्य है कि किसी बीमारी को अपने से दूर रखने के लिए सबसे ज्यादा बचाव देखभाल ही प्रभावी होता है। इस बीमारी के इलाज में काफी अधिक खर्च आता है जो गरीब तबकों के लिए नामुमकिन के बराबर होता है। वैसे भी कैंसर से पीडि़तों को दवा से ज्यादा देखभाल बचाव की आवश्यकता होती है। इस बात की पुष्टि संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी हालिया रिपोर्टग्लोबल एटलस आफ पैलिएटिव केयर एट एंड आफ लाइफकरती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक जिन मरीजों को देखभाल की सबसे जरूरत है, उनमें से एक तिहाई कैंसर से पीडि़त हैं। नियमित व्यायाम, मोटापा में कमी, एल्कोहल एवं तंबाकू उत्पाद  के सेवन पर लगाम जैसे उपायों को अमलीजामा पहनाकर इस बीमारी से बहुत हद तक बचा जा सकता है।

वैसे तो कैंसर की रोकथाम एवं इस बीमारी के बारे में लोगों को मीडिया के अनेक माध्यमों से जागरूक किया जाता रहता है जिसका लाभ शहरी लोगों को अधिक जबकि ग्रामीण तबकों को कम मिल पाता है। इसके पीछे कई सारी वजहें हैं जैसे ग्रामीण परिवेश में मीडिया (अखबार, टेलीविजन, इंटरनेट, रेडियो एवं अन्य) के प्रति लोगों का आकर्षण बहुत कम होता है। आकर्षण कम होने की वजह निरक्षरता के साथ-साथ मूल सुविधाओं जैसे कि बिजली, अखबारों की पहुंच, इंटरनेट की सुविधा होना है। वहीं शहरी लोग ग्रामीणों से ज्यादा शिक्षित होते हैं और सुविधाओं का भी अभाव नहीं होता है। जिसकी वजह से कैंसर के बारे में लोगों को जागरूकता कम रहती है। इसलिए निरक्षरता को दूर करते हुए कैंसर से संबंधित कार्यक्रम को घर-घर तक आसानी से सुलभ कराने की आवश्यकता है। जागरूकता के लिए आसान से आसान माध्यम को विकसित करना होगा। इसमें नुक्कड़ नाटक काफी हद तक मददगार साबित हो सकते हैं। 
वास्तव में यदि कैंसर पर नियंत्रण पाना है तो पर्यावरण की सुरक्षा को प्रमुखता देना होगा। वृक्षारोपण कार्यक्रम को काफी तेज करते हुए उद्योगों  वाहन एवं अन्य के द्वारा किए जा रहे प्रदूषण, धूम्रपान से संबंधित उत्पादों, जनसंख्या वृद्धि आदि पर अंकुश लगाना होगा जिससे हम अपनी आबादी को कैंसर नामक काल से निजात दिला सके और एक स्वस्थ दुनिया के सपने को साकार कर सकें।


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