Jo Beti ko de Pahchan, Mata-Pita wahi MAHAN
जो बेटी को दे पहचान, माता-पिता वही महान
निर्भय कर्ण
कन्या भ्रूण हत्याओं, बालिकाओं के खिलाफ अन्याय को रोकने और उन्हें एक सशक्त, आदर्श समाज देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का फैसला वर्ष 2009 में किया था। ज्ञात हो कि इसी दिन इंदिरा गांधी ने भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। वहीं अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर को मनाया जाता है। एक तरफ तो हम बेटियों को देवी के रूप में पूजते हैं तो दूसरी तरफ इनके साथ भेदभाव कर अपनी असलियत को जगजाहिर करते रहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बेटियों के प्रति समाज का ये दोहरा रवैया क्यों?
दुनिया में तमाम कानून होने के बावजूद लड़कियों के खिलाफ गहरा लैंगिक भेदभाव व्याप्त हैं जैसे-जन्म से पहले ही भ्रूण की लिंग जांच कराकर हत्या, जन्म के बाद पालन-पोषण, स्वास्थ्य और पढ़ाई में भेदभाव, बालविवाह जैसी अनेक समस्याएं अभी भी नीति-निर्धारकों एवं समाज-सुधारकों के माथे पर शिकन लाने में सक्षम साबित हो रही है। इतना ही नहीं समस्याओं का आकलन करने पर बालिकाओं की स्थिति की भयावह तस्वीर निकल कर आती है।
भारत में हर साल 1.1 करोड़ गर्भ चिकित्सकीय तरीके से खत्म किए जाते हैं। जबकि यहां पर 40 प्रतिशत बच्चियों की मृत्यु एनीमिया यानि की खून की कमी की वजह से हो जाती है। दूसरी तरफ, यहां के ग्रामीण इलाकों में 70 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं। युनिसेफ रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 10 लाख बच्चे कुपोषण के कारण मरते हैं जिसमें अधिकतर लड़कियां होती है। जन्म के बाद बच्चियों का पालन-पोषण से लेकर हर कदम पर लड़कों से तुलना कर उनकी उपेक्षा की जाती रहती है।
साक्षरता के लिहाज से देखा जाए तो, भारत में 65.46 प्रतिशत महिलाएं ही पढ़ना और लिखना जानती है वहीं नेपाल में पुरुष साक्षरता दर 75.1 प्रतिशत के मुकाबले महिला साक्षरता दर 57.4 प्रतिशत है। एक ओर जहां भारत में 6.8 प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं तो दूसरी ओर नेपाल में लगभग आधे बच्चे प्राथमिक स्कूल तक भी नहीं पहुंच पाते। लिंगानुपात की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 1000 लड़कों के प्रति लड़कियों की संख्या 914 है जबकि नेपाल में 100 महिलाओं के प्रति पुरुषों की संख्या 94.2 है।
नेपाल विश्व का इकलौता ऐसा देश है जहां पर महिलाओं का जीवन प्रत्याशा यानि की जीवन अवधि पुरुषों की तुलना में सबसे कम है। नेपाली कानून के अनुसार, 16 वर्ष आयु वाला व्यक्ति वयस्क कहलाता है। यहां पर महिलाओं की शादी औसत आयु वर्ष 16 है। भारत के परिदृष्य की बात करें तो पिछले साल आये नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-3 में कहा गया था कि साक्षरता की दर बढ़ने और बाल विवाह पर कानूनी रोक होने के बावजूद भारत में धर्म तथा परंपराओं के चलते बाल विवाह प्रथा आज भी जारी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे अधिक बाल विवाह होते हैं। इसके मुताबिक, देश भर में 18 से 29 आयुवर्ग की 46 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जिनकी शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी गयी। इसके मुताबिक, भारत में फिलहाल दो करोड़ 30 लाख बालिका वधुएं हैं, जो दुनिया भर में हिस्सेदारी के मामले में 40 प्रतिशत हैं।
चूंकि इस मामले में धीरे-धीरे गिरावट देखी जा रही है इसके बावजूद भी ग्रामीण इलाके खासकर गरीब तबकों में बालविवाह को पूर्ण रूप से रोक पाना बड़ी चुनौती है। यह हमेशा जोर दिया जाता रहा है कि यदि लड़कियां व उसका परिवार शिक्षित होगा तो बालविवाह पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। लेकिन शिक्षा पर जोर देने के बावजूद अभी भी बालविवाह की समस्या बरकरार है।
नेपाल की आर्थिक गतिविधियों में 42.07 प्रतिशत योगदान 10-14 साल के लड़के-लड़कियों का होता है जिसमें लगभग 60 प्रतिशत लड़कियां होती है। यह विदित है कि घर से लेकर कार्यस्थल तक लड़कियों को छेड़छाड़ व शोषण का शिकार होना पड़ता है। बच्चियों, महिलाओं के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़ और छींटाकशी जैसी घटनाएं सबसे ज्यादा घरों में ही होती हैं। भारत में इन घटनाओं की शिकार 23 प्रतिशत विवाहित महिलाएं होती है जबकि 77 प्रतिशत अविवाहित महिलाओं को इन समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। दुष्कर्म पीडि़त बच्चियां एवं महिलाओं को आजीवन गहन मानसिक आघात झेलना पड़ता है, कईयों को सामाजिक बहिष्कार तक का सामना करना पड़ता है। कुछ आत्महत्या के रास्ता को अपना लेती हैं तो कुछ मजबूरीवश वेश्यावृत्ति के धंधे को अपना लेती है। वेश्यावृत्ति की बढ़ती समस्या ने सामाजिक सुधारकों को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि यदि जल्द से जल्द इन समस्याओं पर अंकुश न लगा तो सामाजिक व्यवस्था चरमरा जाएगी।
प्रत्येक माता-पिता को अपनी बेटियों को एक अलग पहचान देनी होगी तब जाकर एक स्वच्छंद व भेदभाव रहित समाज की स्थापना हो सकेगा और राष्ट्रीय बालिका दिवस तभी सार्थक होगा जब हम शिक्षा योजना को सही तौर पर क्रियांवित करें, इस व्यवस्था में व्याप्त कमियों को दूर कर हर व्यक्ति तक इसका लाभ पहुंचाएं, वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए कानून का कड़ाई से पालन कराएं और इस काम में शामिल लड़कियों को जागरूक कर उनके जीवन को बेहतर बनाएं। छेड़डाड़, दुष्कर्म के आरोपी को पकड़ कर सख्त से सख्त सजा दिलाना काफी जरूरी है जिससे कि भविष्य में वह दूसरों के लिए सबक बन सके और इन सबसे बड़ी चीज है महिलाओं के प्रति सामाजिक सोच में बदलाव लाना। साथ ही साथ बालिकाओं की सेहत, पोषण व पढ़ाई जैसी चीजों पर ध्यान दिए जाने की खास जरूरत है ताकि वे बड़ी होकर शारीरिक, आर्थिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से न सिर्फ सक्षम व आत्मनिर्भर बनें बल्कि आगे चलकर एक बेहतरीन समाज के निर्माण में भी योगदान दे सकें।
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