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Sarda chitfund ghotala fir se surkhiyon me

सारदा चिटफंड घोटाला फिर से सुर्खियों में

निर्भय कर्ण

सारदा चिट फंड घोटाला ममता बनर्जी सरकार के लिए घातक साबित हो रही है। इस घोटाले के आरोप में गिरफ्तार तृणमूल कांग्रेस के निलंबित सांसद कुणाल घोष द्वारा जेल में आत्महत्या करने के प्रयास ने तृणमूल को सकते में ला दिया है। जिससे यह घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। ज्ञात हो कि कुणाल घोष सारदा चिटफंड घोटाले के आरोप में पिछले साल 23 नवंबर से जेल में बंद हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि तृणमूल के कुछ अन्य नेता भी इस पूरे घोटाले से लाभांवित हुए हैं इसलिए उन नेताओं के खिलाफ भी कार्रवाई होना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक, सारदा घोटाले की कुल राशि करीब 2,460 करोड़ रूपए की है।

कुणाल घोष के इस प्रकरण ने सूबे में फिर से सारदा चिटफंड घोटाले के बहाने राजनीति को तेज कर दिया है। तृणमूल पर हमला करने का एक और मौका विपक्षियों के हाथ लग गया है। इस घोटाले की आंच ममता दीदी और उनकी पार्टी के कई नेताओं तक पहुंच रही है, ऐसे में यहां पर होने वाले आगामी वर्षों में विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा भूनाने में विपक्ष कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। जब से ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी है तब से उसने पूरे राज्य पर एकाधिकार छत्र स्थापित किया है। स्थानीय चुनावों से लेकर लोकसभा चुनाव तक किसी भी दल को अपने से आगे अब तक बढ़ने नहीं दिया। जहां मुख्य विपक्षी वामपंथी दल अपने ही गढ़ में अपने अस्तित्व को बचाने हेतु मारे-मारे फिर रही है तो वहीं बीजेपी मोदी चेहरे के सहारे अपना विस्तार करने में पुरजोर तरीके से जुटी हुयी है। इसका असर हाल ही में बंगाल में देखने को मिला जिसमें बीजेपी और तृणमूल के कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष  होने के कारण तीन लोगों की मौत हो गई एवं अन्य कई लोग घायल हुए। ऐसे में यह माना जा रहा है कि यहां के आगामी विधानसभा चुनाव में दिलचस्प मुकाबला मुख्यतः बीजेपी बनाम तृणमूल ही होगा।  

      पूरे देश में बीजेपी के बढ़ते कद से ममता दीदी हैरान-परेशान है और उसे आशंका है कि नरेंद्र मोदी के सहारे बीजेपी कहीं पश्चिम बंगाल को भी अपने कब्जे में न ले लें। जिस प्रकार लोकसभा चुनाव, 2014 में बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ा, उससे पश्चिम बंगाल की राजनीति एक नया रूप लेने की कोशिश  कर रहा है। एक तरफ तृणमूल सरकार सारदा चिटफंड से उबर नहीं पा रही है तो दूसरी तरफ यहां की मुख्य विपक्षी दल अपने जनाधार को संभालने व बचाने के लिए पुरजोर कोशिश करने के बावजूद इसे बचाने में सफल अब तक सफल नहीं हुयी। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी का बंगाल में उभार ने यहां के दोनों मुख्य दलों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है। यही वजह है कि बार-बार तीसरे मोर्चे बनने की बात समय-समय पर उठती रही और अब महामोर्चा बनने की अटकलें तेज है। ऐसे में यह देखा जाना है कि ममता बनर्जी अपने यहां बीजेपी को रोकने में कितना सफल हो पाती है? लेकिन यह निश्चय है कि अब राजनीतिक समीकरण पहले जैसा नहीं रहा और वर्तमान समय में नरेंद्र मोदी की छवि को नकारना या पीछे धकेलना किसी के लिए आसान नहीं होगा जिसका अंदाजा हालिया हरियाणा और महाराष्ट्र  विधानसभा चुनाव के परिणाम का आंकलन कर आसानी लगाया जा सकता है। 
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