Buniyadi suvidhaon se vanchit aadhi aabadi (on World Toilet Day-19th November) - सुस्वागतम्
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Buniyadi suvidhaon se vanchit aadhi aabadi (on World Toilet Day-19th November)

(विश्व शौचालय दिवस-19 नवंबर पर विशेष)
बुनियादी सुविधाओं से वंचित आधी आबादी
निर्भय कर्ण                  
आधुनिक जीवनशैली से पनप रहे रोगों के पांव पसारने और जलवायु परिर्वतन से बीमारियों के बढ़ने के खतरे के बीच देश अब भी बुनियादी और आधारभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा है। एक तरफ जहां भारत आजादी के बाद से लगातार तरक्की किया है तो वहीं दूसरी तरफ भारत की आधी आबादी अभी त
क बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। खुले में शौच को लेकर भारत की स्थिति पड़ोसी पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से भी खराब है। नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में यह आंकड़ा क्रमश: 40, 23 और 03 फीसदी है। चूंकि नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद भारत में इस स्थिति में तेजी से सुधार होने के संकेत मिलने लगा है। 
गांव तो गांव शहर में भी लोगों को खुलेआम शौच करते हुए देखा जा सकता है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच करना एक पुरानी अस्वस्थ परंपरा रही है। ग्रामीण भारत के 67.3 फीसद यानि करीब 11.3 करोड़ घरों में टायलेट नहीं है। विकसित, शिक्षित और आधुनिक शहर का इस समस्या से जुझते नजर आना और भी आश्चर्य की बात है।
शौच की असुविधा का दुष्परिणाम सबसे अधिक महिलाओं का ही भुगतना पड़ता है, जिन्हें शौच के लिए अंधकार होने तक का इंतजार करना पडता है। शर्म, संकोच और डर के चलते महिलाएं शौच के लिए सुबह और देर शाम ही खेत जाती है। खुले में शौच में जाने से लड़कियों के साथ हमेशा छेड़खानी और बलात्कार का डर बना रहता है। हाल ही में यूपी के बदायूं में रात को खेत गई दो लड़कियों का कथित सामूहिक बलात्कार और हत्या कर उन्हें पेड़ से लटका दिया गया। कमोबेश यही स्थिति पूरी दुनिया में है। वहीं बच्चों की बात करें तो यह भी वयस्क के मल की तरह हानिकारक होता है। बच्चों में पोलियों का वायरस भी खुले में किये गये शौच के माध्यम से फैलता है। कई लोगों को स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के संबंध के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है परन्तु बहुत सारे अध्ययनों से ज्ञात होता है कि 80 प्रतिशत बीमारियां अस्वच्छता के कारण ही होता है। एक ग्राम मल में एक करोड़ वायरस तथा 10 लाख बैक्टीरिया होते है। ये वायरस एवं बैक्टीरिया मक्खी के साथ भोजन के माध्यम से मनुष्यों में प्रवेश कर बीमारी फैलाते है। ऐसे में नरेंद्र मोदी की स्वच्छता अभियान की महत्ता को इस परिप्रेक्ष्य में बखूबी समझा जा सकता है।
घर तो घर स्कूलों में भी शौच की सुविधा पर्याप्त और सुविधाजनक नहीं है। चाहे वह ग्रामीण विद्यालय की बात करें या फिर शहरी विद्यालय की। कई अध्ययनों से ये साबित होता है कि अगर विद्यालय में शौचालय ना हो तो माता-पिता लड़कियों को पढ़ने नहीं भेजते। इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी माना और कहा कि बुनियादी सुविधाओं का अभाव संविधान में दिए गए मुफ्त और जरुरी शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।
एक आकलन के मुताबिक, दुनिया भर की करीब आधी आबादी आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर है और इसका एक बड़ा हिस्सा एशिया में ही रहती है। भारत में 1981 में करीब एक फीसद लोगों के पास शौचालय की सुविधा मौजूद थी। लेकिन उसके बाद से अब तक इस मामले में काफी प्रगति देखने को मिला है। गौर करें तो केंद्र सरकार 1999 से गांवों में शौचालय के लिए धन दे रही है। इस धन से अब तक 9 करोड़़ 73 लाख शौचालय बनाने का दावा किया गया है लेकिन पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय 2012 के सर्वेक्षण के अनुसार, इनमें से कम से कम 2.764 करोड़ शौचालयों का वास्तविक जमीन पर कोई वजूद ही नहीं है और 1.415 करोड़ शौचालय बेकार पड़े हुए हैं, जिनका इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं है। 
नवीनतम जनगणना आंकड़ों के अनुसार, भारत के 1.2 अरब लगभग में से लगभग आधे घर में शौचालय नहीं है। जारी आंकड़ों के मुताबिक 246,600,000 घरों में से केवल 46.9 प्रतिशत शौचालय है, जबकि 49.8 प्रतिशत खुले में शौच करते हैं शेष 3.2 प्रतिशत सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करते हैं।
इन आंकड़ों पर गौर करें तो 2008 वाली स्थिति अब भी बरकरार है यानि कि 2008 के बाद शौचालय की असुविधा को निपटाने का काम अधर में अटका पड़ा है अथवा केवल इसके नाम पर केवल खानापूर्ति कर दी जाती है। इस बात पर चिंता व्यक्त करते हुए तत्कालीन महापंजीयक और जनगणना आयुक्त सी चंद्रमौली ने आंकड़े जारी करते हुए कहा था कि जनसंख्या का लगभग आधी आबादी का खुले में शौच करना देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक वर्ष 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य होता है लोगों को इसके बारे में जागरुक किया जाए और शौचालय के निर्माण और उपयोग हेतु लोगों को प्रेरित किया जाए, जो बुनियादी सुविधाओं की जड़ है।
इस बात को मानने से हमें गुरेज नहीं करना चाहिए कि सरकार लोगों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कई योजनाएं चला रही है। मोदी सरकार का अनुमान है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत खुले में शौच को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए अगले पांच साल में करीब 11.1 करोड़ नए शौचालय बनवाने होंगे। जिसके लिए भारत सरकार काफी गंभीर है।

मोदी सरकार का प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि उत्साहवर्धक भी लेकिन इसी प्रकार दुनियाभर की सरकार को इस बारे में विशेष रूप से ध्यान देना होगा जिससे कि पूरी आबादी अपनी बुनियादी सुविधाओं से महरूम न रह सके और विश्व शौचालय दिवस के उद्देश्य को पूरा किया जा सके।
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