Prachar abhiyan me Modi ke utarate hi chunavi para santve aasman par
प्रचार
अभियान में मोदी के उतरते ही चुनावी पारा सातवें आसमान पर
निर्भय कर्ण
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विदेशी दौरा
खत्म होते ही जम्मू कश्मीर और झारखंड में 25 नवंबर को होने जा रहे प्रथम चरण के विधानसभा चुनावी मैदान
में उतरते ही दोनों ही राज्यों में चुनावी पारा आसमां को छूने लगी है। चूंकि भाजपा
सहित सभी दल दोनों ही राज्यों में पहले से ही अपने-अपने पक्ष में माहौल करने के
लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही थी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सहित तमाम नेता
प्रचार-प्रसार में जुटे थे लेकिन नरेंद्र मोदी के आते ही भाजपा नेता सहित कार्यकर्ताओं
के बीच उत्साह का संचार काफी तेजी से हुआ है।
चूंकि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और यहां का
राजनीतिक समीकरण भारत के सभी राज्यों से भिन्न है। यहां की राजनीति में अपरोक्ष
रूप से पाकिस्तान का हस्तक्षेप होता है इसलिए यहां का विधानसभा चुनाव अपने आप में
महत्वपूर्ण होता है। इसलिए यहां की राजनीतिक समीकरणों को बखूबी समझते हुए भाजपा ने
मिशन 44$ के लिए पूरी ताकत झोंक
दी है और कई मोर्चे पर इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयासरत है। बीजेपी का
आत्मविश्वास का ग्राफ अन्य दलों से काफी ऊपर है क्योंकि लोकसभा चुनाव में इसने
राज्य की आधी तीन लोक सभा सीट जीतते हुए सबसे ज्यादा 32.4 फीसदी वोट हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा भी हासिल कर
लिया था। ऊपर से हरियाणा और महाराष्ट्र में रिकार्ड जीत ने भाजपा के आत्मविष्वास
को और दुगुना कर दिया है।
यहां पर मुख्यतः चार पार्टियों के बीच मुकाबला होना है वे
हैं भाजपा, कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस। चूंकि बीजेपी ने
लोकसभा चुनाव में जम्मू क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया था लेकिन घाटी में
सफलता हाथ नहीं लग सका। लेकिन तब से वहां पर राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले हैं। यह
माना जा रहा है कि बीजेपी को घाटी में नेषनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के बीच बंटने का लाभ मिलने वाला है। ऊपर
से पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद गनी लोन का अघोषित समर्थन से बीजेपी को फायदा
मिलना तय माना जा रहा है। गौर करें तो जम्मू कश्मीर के शासन में प्रायः वंशवाद का
बोलबाला रहा है। अब्दुल्ला परिवार की परंपरागत सीट गंदरबाल से इस बार इस परिवार का
कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है। उमर के दादा और फारूख अब्दुल्ला के पिता शेख
अब्दुल्ला भी इसी सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। कहा जा रहा है कि नेशनल कांफ्रेंस
अपनी पुरखों की सीट गंवा न दें, इसलिए इस सीट से
अब्दुल्ला परिवार के किसी सदस्य को इस सीट से उतारा नहीं गया है। भाजपा अध्यक्ष
अमित शाह ने कश्मीर राजनीति के तहत वंशवाद
के खिलाफ अभियान को प्रमुखता दिया है। शाह को लगता है कि हरियाणा की तरह वंशवाद पर
धावा बोलते हुए जम्मू कश्मीर के वोटरों को अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। हाल
में सभी ने देखा कि हरियाणा में किस तरह जातिवाद व वंशवाद की राजनीति करने वालों
को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था।
देखा जाए तो भाजपा ने जम्मू कश्मीर में
विधानसभा चुनाव को फतह करने के लिए लोकसभा चुनाव जीतने के बाद ही फूंक-फूंक कर कदम
उठाना शुरू कर दिया था। मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही जम्मू कश्मीर का ताबड़तोड़
पांच बार दौरा कर वहां की जनता का दिल जीतने का भरपूर कोशिश किया था। दिवाली का
दिन भी मोदी ने बाढ़ पीडि़तों के नाम कर दिया था। वहां पर बाढ़ आने के बाद मोदी
भरपूर मदद देकर व विशेष दिलचस्पी लेकर अपने इरादे जता चुके हैं जिसका लाभ निश्चय ही
भाजपा को इस चुनाव में मिलने जा रहा है।
सभी समीकरणों को मिलाकर देखा जाए तो भाजपा को
जम्मू कश्मीर में मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल हो चुकी है लेकिन असली बढ़त और जीत
परिणामों के आने के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन यह बात तय है कि नरेंद्र मोदी के
चुनावी मैदान में उतरते ही विपक्षियों को हार का डर सताने लगा है।
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