JDU ki rajniti par uthate sawal
जदयू की राजनीति पर उठते सवाल
निर्भय कर्ण
बिहार में अपने आपको समाजवादी होने का दावा करने वाली जदयू
दल कुछ दिनों से स्वयं कठघरे में है और इसकी वजह है उसी के दल के बिहार के
मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का समाजवाद विरोधी बयान देना। समाजवाद पर करारा चोट
किया जा रहा है। मांझी ने हाल ही में एक भाषण के दौरान कहा था कि आदिवासी यहां के
मूल निवासी हैं और सवर्ण बाहर से आये हुए हैं। सवर्ण विदेशी हैं। इस कथन से नीतीश
कुमार-शरद यादव की जदयू पार्टी की समाजवाद का असली चेहरा सामने खुलकर आ गया है।
समाजवाद के पुरोधा कहे जाने वाले डॉ राम मनोहर लोहिया ऐसी समाजवादी व्यवस्था चाहते
थे जिसमें सभी की बराबर की हिस्सेदारी रहे। जहां समाजवाद का मतलब समाज को एकसूत्र
में पिरोकर समाज को मजबूत करना है तो वहीं मांझी ने अपने समाजवाद का असली रूप दिखा
दिया है। इनके बयान को झारखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा
रहा है। वहां के आदिवासियों के वोट को जदयू के पक्ष में तब्दील करने का इसे प्रयास
माना जा रहा है। इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए पूर्व विधान पार्षद संजय झा ने कहा
कि ‘‘मांझी का उच्च जातियों पर
वाल्मीकिनगर में दिया गया बयान आपत्तिजनक है।’’ ऐसे में जदयू की राजनीति फिर से सवालों के घेरे में
है।
राम मनोहर लोहिया व जय प्रकाश नारायण, इन दोनों ही शख्सियतों से बड़ा समाजवादी नेता
भारत के राजनीतिक इतिहास में कोई नहीं हुआ। और इनके समय से ही निकले नीतीश कुमार
एवं शरद यादव को ये बातें कहां से रास आने वाली थी। इसलिए समाजवाद की विचारधारा के
विपरीत बयान आने के बाद जदयू तुरंत हरकत में आ गयी। पहले तो पार्टी ने मुख्यमंत्री
के बयान से पल्ला झाड़ लिया तो वहीं राज्य के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह ने इसका
ठीकरा भाजपा पर ही फोड़ दिया। नरेंद्र सिंह का कहना था कि ‘‘मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के विवादित बयान से पार्टी को
नुकसान हो रहा है। इसके पीछे भाजपा की साजिश है।’’ यह बयान अपने आप में ही हास्यास्पद है। मुख्यमंत्री का खुले
मंच से ऐसा बयान देना और उसे विपक्षी की साजिष करार देना यह साबित करता है कि जदयू
की हालत राज्य में कितनी खराब हो चुकी है। वास्तव में देखा जाए तो जमीनी स्तर पर
बिहार-यूपी में कहीं पर भी कोई समाजवाद नाम की चीज रही ही नहीं। बस समाजवाद के नाम
पर अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम चल रहा है।
अभी उपरोक्त बयान की तपिश कम भी नहीं हुयी थी कि एक बार फिर
से बिहार के मुख्यमंत्री अपने ही पार्टी के निशाने पर आ गए हैं। बाढ़ थर्मल पावर
के उद्घाटन के मौके पर मांझी ने कहा कि ‘‘अगर मोदी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे देते हैं तो कोई उनका समर्थक बने
या नहीं, मैं उनका बड़ा समर्थक बन
जाऊंगा।’’ जानकारों का मानना है कि
मांझी का मोदी का समर्थक होना कोई नयी बात नहीं है बल्कि खुले मंच से ऐसी उदघोषणा
करना चौंकाने वाली बात है। हकीकत भी यही है कि विपक्ष भी अंदर ही अंदर मोदी के कार्यों
की सराहना करते हैं लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के चलते खुले रूप से इस बात को स्वीकार
नहीं कर सकते। इसी का नतीजा है कि इस बयानबाजी से नीतीश कुमार सहित शरद यादव तक
सकते में है और उनके पार्टी में मांझी का जबरदस्त विरोध चल रहा है। पार्टी अध्यक्ष
शरद यादव का स्पष्ट कहना था कि संवैधानिक पद पर बैठे लोगों को दायरे में रहना
चाहिए। ज्ञात हो कि लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री
पद से हटना पड़ा था और जीतन राम मांझी को बिहार की सत्ता सौंपा गया था।
यह
माना जा रहा है कि मांझी भी मोदी के समर्थक हैं लेकिन बड़े समर्थक इसी शर्त पर वह
होंगे जब मोदी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे देंगे। इस बात के कई मायने निकाले
जा सकते हैं। एक तो मांझी का मोदी का समर्थक होना तो दूसरा यह कि यदि प्रधानमंत्री
बिहार को आगामी विधानसभा चुनाव से पहले
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे देतें हैं तो उसे अपने पक्ष में लोगों के बीच
भूनाना। यदि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त हो जाता है तो जदयू इसे अपनी
जीत बताने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी तो दूसरी ओर बिहार में नरेंद्र मोदी की लहर
सुनामी में बदलने से कोई रोक नहीं पाएगा। जिसका परिणाम होगा राज्य में सत्ता
परिवर्तन। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा 2015 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मिले या न मिले,
लेकिन नरेंद्र मोदी के अब तक के कार्यकाल व छवि
से बिहार की जनता ही नहीं बल्कि पूरा भारत मोदी का मुरीद हो चुकी है। जिसमें जीतन
राम मांझी का भी नाम जुड़ चुका है।
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