'Mahamorcha' ke prayason ki yatharthata - सुस्वागतम्
Buy Pixy Template blogger

'Mahamorcha' ke prayason ki yatharthata

             ‘महामोर्चा’ के प्रयासों की यथार्थता

निर्भय कर्ण

भारत में लोक सभा चुनाव, 2014 के परिणाम आने के बाद सभी राजनीतिज्ञ पंडितों की भविष्यवाणी गलत साबित हो गयी थी। किसी ने सपने में भी यह सोचा नहीं था कि भाजपा बहुमत प्राप्त कर केंद्र की सत्ता पर विराजमान होगी। इस चुनाव ने कई कीर्तिमान स्थापित करते हुए हरियाणा और महाराष्ट्र में भी जीत का सिलसिला जारी रखा। इससे सभी विपक्ष सदमे में है और विचार-विमर्श कर अपने आप को समाजवादी दल का दावा करने वाली पार्टियां मिलकर एक ‘महामोर्चा’ को वैकल्पिक रूप देने का असफल प्रयास करने में जुट गयी है।

                सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह कि गत् 6 नवंबर, 2014 को सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव के दिल्ली स्थित आवास पर जनता पार्टी के साथी रहे आरजेडी, जेडीयू, जेडीएस और आईएनएलडी को एक साथ बैठने की क्यों आवश्यकता पड़ गयी? इस बात का खुलासा करते हुए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने कहा कि ‘‘हम सब मिलकर ‘महामोर्चा’ बनाएंगे। हम सभी ने फिलहाल एकजुट होने का फैसला लिया है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो सभी पार्टियों का विलय होकर पुराना जनता परिवार फिर अपने पुराने रूप में लौटेगा।’’ इस बैठक के कई मायने हैं। जानकार बताते हैं कि 2019 में होने वाले आम चुनावों को देखते हुए ‘महामोर्चा’ बनाने की कवायद चल रही है। जबकि सूत्रों का कहना है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कई राज्यों में अपना प्रभाव जमाने और राज्य सभा की सीटें बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभाव खत्म करने में जुटी है। तो दूसरी ओर विपक्षी इस बात को अच्छी तरह समझ चुका है कि मोदी से कोई अकेला पार नहीं पा सकता। मोदी की काट न तो कांग्रेस के पास है और न ही वामपंथियों के पास। ऐसे में ‘महामोर्चा’ की चर्चा अहम है। सभी चाहते हैं कि सभी गैर भाजपा-गैर कांग्रेसी दल मिलकर काम करें। इस बैठक का निचोड़ यह भी निकाला जा सकता है कि 2013 में बिहार में विधान सभा चुनाव तो 2017 में यूपी में होने जा रहे विधान सभा चुनाव में अपनी सरकार को बनाए रखने व बचाने के लिए यह सब किया जा रहा है। जहां यूपी में मुलायम सिंह की सपा तो बिहार में नीतीश की पार्टी जदयू व लालू प्रसाद यादव की राजद को भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है। भाजपा‘हिन्दुत्व’ के अपने बुनियादी विचारों पर कायम रहते हुए उसने नए ढ़ंग की सोशल-इंजीनियरिंग के जरिए दलितों-पिछड़ों में भी अपनी जगह बनाने में सफल हो रही है। ऐसे में यदि ये एक नहीं हुए तो नरेंद्र मोदी से पार पाना इन दोनों राज्यों में मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा। इसके अलावा देश के सभी राज्यों में मोदी लहर सुनामी की तरह चल रही है और आगामी सभी विधान सभा चुनावों में इसकी धमक को महसूस किया जा सकता है। मोदी लहर का आलम यह है कि अब तक हरियाणा और महाराष्ट्र सहित कुल नौ राज्यों में भाजपा व उसके सहयोगी की सरकार बन चुकी है। 

                इस बैठक में राजद प्रमुख लालू यादव, जनता दल सेक्यूलर के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा, जेडीयू नेता नीतीश कुमार और शरद यादव और आईएनएलडी के सांसद दुष्यंत चौटाला मौजूद रहे। मतलब साफ है कि समाजवाद में विश्वास रखने वाली पार्टियां एक-दूसरे के करीब आ रही है। ज्ञात रहे कि समाजवाद के नायक जय प्रकाश नारायण के अनुयायी लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव ये सभी तमाम नेता रहे हैं लेकिन सत्ता के लोभ ने उन्हें जेपी की विचाराधारा से बिल्कुल अलग कर दिया। सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाली ये पाटियां अब तक बिहार और यूपी में लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद समाज को मजबूत करने के बजाय नुकसान ही पहुंचाती रही। एक तरफ वे सत्ता का सुख भोगते रहे तो दूसरी ओर राज्य विकास के बजाय पिछड़ता चला गया। यूपी हो या बिहार, यहां कितना विकास हो पाया, यह सभी जानते हैं। इनके घनघोर जातिवाद और परिवारवाद पर चोट करते हुए नरेंद्र मोदी ने सभी को लोक सभा चुनाव में धूल चटा दी और इशारे ही इशारे में कह गए कि अब देश में जातिवाद और परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं है, और इसे जितना जल्दी त्याग दें, उतना ही अच्छा होगा।

                 लोक सभा में करारी हार के बाद उप चुनाव के लिए जेडीयू और राजद ने मिलकर महागठबंधन किया, लेकिन इसमें जो उन्हें सफलता मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली। अगर महागठबंधन को इन चुनावों में एकतरफा जीत मिलती तो इससे भाजपा के दूसरे विरोधी एक महागठबंधन बनाने के बारे में सोच सकते थे। ‘महामोर्चा’ बनने के प्रयासों से एक बार फिर महागठबंधन को बल मिला है। लेकिन अभी भी इस बात का संशय है कि महामोर्चा बन भी पाएगी या नहीं या यदि बन जाती है तो क्या वे मोदी के खिलाफ सफलता दर्ज कर पाएंगे? गौर करें तो वर्तमान परिवेश में मोदी का कोई मुकाबला ही नहीं है। मोदी और अमित षाह की जोड़ी सफलता की सीढि़यों पर चढ़ने में लगातार अग्रसर है। केंद्र में ऐसी नीतियां बन रही है और कार्य हो रहा है कि विपक्षियों को मुद्दा ढूंढ़ने के बावजूद भी नहीं मिल रहा। मोदी सरकार के कार्य की सराहना सभी विपक्षी अप्रत्यक्ष तौर पर स्वीकार करते हैं। गौर करें तो क्षेत्रीय दल का नेतृत्व व्यक्तिवाद और परिवाद की धूरी पर टिका है। इन दलों का मुद्दा अकसर क्षेत्रीय यानि की स्थानीय ही होता है। अब क्षेत्रीय दलों व बनने वाली महामोर्चा का भविष्य बहुत हद तक अब मोदी सरकार के कामकाज पर निर्भर करेगा  
Previous article
Next article

Leave Comments

Post a Comment

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads