Mahilayen apne adhikaron ke liye swayam aage aayen (on International Day for the Elimination of Violence against Women- 25th November) - सुस्वागतम्
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Mahilayen apne adhikaron ke liye swayam aage aayen (on International Day for the Elimination of Violence against Women- 25th November)

(महिला हिंसा विरोधी दिवस-25 नवंबर के उपलक्ष्य में)
महिलाएं अपने अधिकारों के लिए स्वयं आगे आएं
निर्भय कर्ण
25 नवम्बर 1960 को डोमिनिकन गणराज्य के तानाशाह की विरोधी तीन मीराबेल बहनों की उनकी राजनीतिक गतिविधियों को लेकर क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गई थी। उनकी ही याद में प्रत्येक वर्ष 25 नवम्बर को महिला हिंसा विरोधी दिवस दुनियाभर में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1999 के दिसम्बर महीने में एक प्रस्ताव के माध्यम से 25 नवम्बर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया था। लेकिन यह दिवस घोषित कर देने से क्या महिला हिंसा कम हो गयी है या लोगों का नजरिया महिला के प्रति बदल गया है?
1960 के बाद से लेकर महिला सशक्तिकरण की चर्चा लगातार सुर्खियों में रहा है। महिला सशक्तिकरण का मतलब है- महिला सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप में स्वावलंबी, आत्मविश्वासी व अपनी अस्मिता के प्रति सकारात्मक विचारों को रखे जिससे महिला हर परिस्थिति के समक्ष मुकाबला करने में सक्षम हो। हर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास कार्यों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित  हो। लेकिन आंकड़े और हकीकत यहीं बयां करते हैं कि कितना भी महिला सशक्तिकरण हो जाए लेकिन जब तक हम अपने मन से महिला के प्रति गलत व दकियानुसी अवधारणाओं को निकाल कर सशक्त नहीं होंगे, तब तक कुछ नहीं हो सकता।
      बीते दशकों के दौरान भी लोगों की इस धारणा में कोई खास परिवर्तन नहीं हो सका है कि नारी -संपत्ति है, संभोग और संतान की इच्छा पूरी करने का साधन मात्र व उपभोक्तावादी संस्कृति में उपभोग्य वस्तु है। इस पुरुष प्रधान समाज में नारियां भावनात्मक हिंसा का शिकार, कहीं व्याभिचार, कहीं बलात्कार, पति की गालियां, पीहर के लिए अपशब्द, दुष्चरित्रा की संज्ञा, अवहेलना, अवमानना, प्रताड़ना, यौनाचार की घटना, अमानवीय व्यवहार, दोहरी भूमिका का तनाव, सामाजिक कुसंस्कार के पिंजड़े में बंद, पराया धन का तमगा यानि की नारियां अनर्गल और बर्बर परंपराओं से पीडि़त हैं।
यही वजह है कि भारत से लेकर नेपाल तक महिलाओं को हिंसा का शिकार होना पड़ता है। नेपाल की कानून व्यवस्था इस कदर जर्जर है कि अनेकों घटनाओं का तो कुछ पता ही नहीं चल पाता और न जाने कितनी बेटियां व बहुएं घरेलू हिंसा का शिकार होती रहती हैै क्योंकि सच पूछिए तो डेढ़ गुना मामले ऐसे होते हैं, जिनमें या तो महिलाएं पुलिस के पास जाती नहीं है या फिर केस दर्ज ही नहीं होता। शिकायत ना करने के पीछे एक मात्र कारण होता है वो है बदनामी। कुछ कम ही सही लेकिन ऐसे हालात भारत सहित पूरे एशिया में विद्यमान है। आफिस से लेकर बाजारों तक यहां तक कि अपने घरों में भी न जाने कितनी लड़कियां छेड़छाड़ का रोजाना शिकार होती रहती है। बच्चियों, महिलाओं के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़ और छींटाकशी जैसी घटनाएं सबसे ज्यादा घरों में ही होती हैं। भारत में इन घटनाओं की शिकार 23 प्रतिशत विवाहित महिलाएं होती है जबकि 77 प्रतिशत अविवाहित महिलाओं को इन समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। दुष्कर्म पीडि़त बेटियों एवं महिलाओं को आजीवन गहन मानसिक आघात झेलना पड़ता है जिसमें से कईयों को तो सामाजिक बहिष्कार सामना करना पड़ता है। कुछ आत्महत्या के रास्ता को अपना लेती हैं तो कुछ मजबूरीवश वेश्यावृत्ति के धंधे को।
आखिर इसके पीछे कौन जिम्मेदार है-सरकारी मशीनरी या फिर निरक्षरता या हमारी सामाजिक मानसिकता या नारी स्वयं। कुल मिलाकर ये सभी तत्व जिम्मेदार है और इन सबसे मुक्ति पाना अत्यंत आवश्यक है नहीं तो हमलोग हर बार महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाते रहेंगे और प्रण लेते रहेंगे लेकिन होगा रत्ती भर कुछ भी नहीं और महिलाओं के खिलाफ हिंसा जारी रहेगी। हिंसा रोकने के लिए जरूरी है- सोच में बदलाव, उचित शिक्षा, सही परवरिश व स्वावलम्बन। विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि महिला की साक्षरता दर बढ़ने से हिंसा पर नाममात्र की कमी होती है। साक्षरता के लिहाज से देखा जाए तो, भारत में 65.46 प्रतिषत महिलाएं ही पढ़ना और लिखना जानती है वहीं नेपाल में पुरुष साक्षरता दर 75.1 प्रतिशत के मुकाबले महिला साक्षरता दर 57.4 प्रतिशत है। इसलिए उपर्युक्त कारकों पर ध्यान देते हुए अब महिलाओं को स्वयं आगे बढ़कर इन सबसे मुक्ति पाना होगा जिससे कि उन्हें कोई कमजोर न समझ सके। अब बेटियों को स्वयं स्वावलंबन होकर अपने अधिकारों को समझना होगा और उन अधिकारों को पाना होगा क्योंकि आखिर कब तक सरकारी मशीनरी पर हम भरोसा करते रहेंगे। महिलाओं के हितों को सुरक्षा देने के लिए दर्जनों कानून दुनियाभर में मौजूद है लेकिन लोगों के मन में इसका डर नाममात्र ही है। इसलिए अकसर बलात्कार, छींटाकशी, दहेज के लिए जलाकर मार देने की घटनाएं आदि देखने व सुनने को मिलती रहती है। इसलिए अब समय आ गया है कि महिला स्वयं भी अपने को सशक्त करें और कुरीतियों का मुकाबला कर अपने साथ हो रहे हिंसा और अत्याचार का करारा जवाब दें।


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