Badstur jari hai Jatiya vibedh ki ghatna (Jatiyavibedh virudh diwas 21 March ke mauke par)
(21 मार्च - जातीयविभेद विरूद्ध दिवस के मौके पर)
बदस्तूर जारी है जातिय विभेद की घटना
निर्भय कर्ण
जाति एक ऐसा मुद्दा जिससे कोई भी देश अब तक अछूता न रह सका है। कहीं यह धर्म के रूप में तो कहीं समुदाय के रूप में तो कहीं यह क्षेत्रवाद के रूप में निकल कर आता है लेकिन उपरोक्त इन तीनों में सभी प्रकार के जाति निवास करती है। एक समय ऐसा भी आता है जब एक ही क्षेत्र, एक ही समुदाय व धर्म की दो जातियां दो भागों में विभक्त हो जाती है जिसमंे केवल और केवल द्वेष, तृष्णा, बदला एवं अन्य निरर्थक व विनाशकारी भावनाओं को जन्म देती है। उस समय लोग यह भूल जाते हैं कि सभी एक इंसान है चाहे वह किसी जाति, धर्म व समुदाय का हो। ऐसे में लोगों के जेहन में यह सवाल उठता है कि आखिर वह क्या-क्या वजहें हैं जिसके कारण लोग एक-दूसरे के जान के प्यासे हो जाते हैं।
नेपाल में जातिय विभेद को समाप्त करने के उद्देश्य से ही प्रत्येक वर्ष 21 मार्च को जातियविभेद विरूद्ध दिवस मनाया जाता है। इस दिवस के मौके पर देश के कोने-कोने में कई प्रकार के कार्यक्रम किए जाते हैं जिसका एकमात्र उद्देश्य होता है देश में फैली जातिय द्वेष को कम किया जा सके और किसी भी प्रकार के जातिय विभेद की समस्या को रोका जा सके जिससे सभी नेपालवासी मिलजुल कर इंसानियत की जिंदगी को जी सके।
देखा जाए तो, 2001 में नेपाल में हुए जनगणना में मधेश में 50 से अधिक जातियों की पहचान की गयी और विभिन्न जातियों में द्वेष जगजाहिर है। नेपाल हो या भारत या कोई अन्य देश सभी जगह जातियों के आधार पर शोषण का मामला भी आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनती रहती है। नेपाल में ही लगभग 45 लाख दलित आबादी उच्च वर्गों के आगे शोषित नजर आती है। निम्न जाति पर जुल्मों सितम आज के आधुनिक युग में भी जारी है। कहीं मंदिर में प्रवेश के नाम पर तो कहीं उसके द्वारा छुए गए पानी के नाम पर निम्न जातियों के साथ प्रताड़ना की जाती रहती है। कुछ महीने पहले ही सप्तरी के एक ईंट भट्टा मंे कार्य कर रहे दलित व्यक्ति को पीट-पीट कर मार दिया गया। वहीं एक महीना पहले ही राजबिराज में डोम समुदाय के एक विद्यार्थी को किराये पर घर देने से इंकार कर दिया गया जिससे वह छात्र काफी हताश हुआ। वैसे इस प्रकार की घटना आए दिन होती रहती है जिससे यह सवाल पैदा होता है कि आखिर यह जातिय विभेद कब खत्म होगा। ऐसा नहीं है कि इसे रोकने के लिए नियम-कानून नहीं है। देखा जाए तो समय के साथ-साथ ऐसे शोषण को रोकने के लिए कई कानून भी बने जैसे जबकि नेपाल के अंतरिम संविधान 2063 की धारा 14 के अंतर्गत व्यक्ति को जाति, वंश, समुदाय और पेशा के आधार पर भेदभाव को अपराध माना गया। लेकिन इन कानूनों की धज्जियां उड़ना भी आम बात सी हो गयी है।
वहीं देश में डायन (बोक्सा/बोक्सी) के नाम पर भी लोगों को प्रताड़ना दी जाती रहती है जिसमें महिलाओं को अधिकतर इससे दो-चार होना पड़ता है। डायन के नाम पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ व मार-पीट की घटना भी सरेआम होती रहती है। इसे रोकने के लिए भी नेपाल के संविधान मंे व्यवस्था की गयी जिसके लिए सजा तक का प्रावधान है।
आरक्षण के बदौलत भी निम्न जातियों की स्थितियांे में कुछ सुधार आया है, खासकर वे लोग जो शिक्षा से जुड़ पाए। लेकिन अभी भी अधिकतर निम्न जातियों के बच्चे शिक्षा से जुड़ने में असफल हैं और हो भी रहे हैं। इसलिए हर बच्चे को षिक्षा से जोड़ना न केवल आवष्यक है बल्कि अनिवार्य भी जिससे वे अपनी स्थिति को मजबूत कर सके। दलितों व गरीबों के साथ जातिय विभेद की घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि यदि ये जातियां गरीबी का शिकार न हांे तो उनके साथ शोषण की घटना बहुत ही कम होती है। उच्च वर्ग में भी यदि कोई गरीब है तो उसे भी काफी शोषण से दो-चार होना पड़ता है। यथार्थ कि यदि कोई शैक्षिक व आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो तो वह दलित भी उच्च श्रेणी में आ जाता है। आज के युग में दलितों की परिभाषा बदल देना चाहिए। मेरे नजरिए में दलित व निम्न जाति वह है जो शिक्षित नहीं है व मानसिक रूप से दकियानुसी सोच के बदौलत सामाजिक कुरीतियों को दूसरे पर थोपने पर उतारू रहते हैं। साथ ही जो लोग आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो गया है उसे निम्न वर्ग नहीं बल्कि उच्च श्रेणी में मान्यता दे देना चाहिए।
Previous article
Next article
Leave Comments
Post a Comment