Angrejon ki 'Foot Dalo aur Shashan Karo' Ki Niti par Badi Partiyan - सुस्वागतम्
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Angrejon ki 'Foot Dalo aur Shashan Karo' Ki Niti par Badi Partiyan

अंग्रेजों कीफूट डालो और शासन करोकी नीति पर बड़ी पार्टियां

 दिल्ली के नंगली के निगम पार्षद सतिंदर राणा का कहना है कि ‘‘ अब वक्त गया है कि हम पूर्वांचली भी एकजुट हों और विधानसभा रूपी भवन को हम मिलकर तैयार करें जिससे कि हम अपनी आवाज को बुलंद कर सके। एनयू संवाददाता ने राणा से खास बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत केमुख्य अंश- सवाल: पिछले नगर निगम चुनाव में पूर्वांचलियों को आबादी के अनुपात में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला, इसकी वजह आप क्या मानते हैं? जवाब: बड़ी पार्टियां हम पूर्वांचलियों को तवज्जो नहीं देती हैं। चुनाव रूपी भवन को तैयार करने में पूर्वांचली एक-एक ईंट यानि की एक-एक वोट देकर भीड़ इकट्ठी करके भवन को बनाने में अपना योगदान देते हैं। लेकिन भवन तैयार होते ही उस मजदूर यानि की हम पूर्वांचलियों को एक लड्डू वशाबासी देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और दूसरे लोग उस भवन में राज करते हैं। सवाल: इन पार्टियों को पता है कि इस वोट बैंक के बिना उन्हें सत्ता हासिल नहीं होने वाली, फिर भी इस तरह का रूखा व्यवहार आप सबके साथ क्यों हो रहा है? जवाब: लुभावने प्रलोभन देकर लोगों को आकर्षित किया जाता रहा है लेकिन अब पूर्वांचली जागरूक हो रहे हैं। इसका परिणाम कहीं कहीं जरूर दिखेगा। आप देखिए कि जो पूर्वांचली निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ते हैं, वे जीतते भी है। अगर किसी कारणवश कोई हार भी जाते हैं तो उनका वोटिंगप्रतिशत काफी अधिक होता है यानि की काफी कम वोटों से वे हारते हैं। सवाल: आप भी काफी लंबे समय से कांग्रेस की सेवा करते रहे हैं, इसके बावजूद आपको 2012 के नगर निगम चुनाव में टिकट नहीं दिया गया और आप निर्दलीय खड़े हुए और जीते भी। कांग्रेस का आपको टिकट देने की वजह आप क्या मानते हैं? जवाब: इसके पीछे एक ही वजह है कि पूर्वांचिलयों को यहां पर नकारा जाता है। बड़ी पार्टियां यही सोचती है कि पूर्वांचली भीड़ इकट्ठी करे और तालियां बजाये। इससे ज्यादा वे हमें नहीं समझते। सवाल: अभी भी पूर्वांचली अपने अधिकारों को लेकर पूर्ण रूप से एकजुट नहीं हो पाए हैं, ऐसा कुछ आपको प्रतीत होता है? जवाब: ऐसा कुछ नहीं है। बड़ी पार्टियां अंग्रेजों कीफूट डालो और शासन करोकी नीति अपनाती रही हैं और हमें तोड़कर सत्ता तक पहुंच पाने में अभी तक सफल रही हैं। हम एकजुट हो रहे हैं और अब समय गया है कि हम सब पूर्ण रूप से एकजुट हों और अपना वजूद कायम करें। सवाल: कहीं ऐसा तो नहीं है कि यदि बड़ी पार्टियां पूर्वांचलियों को उसके आबादी के अनुपात में टिकट दे दें और वे लोग जीतकर गए, तो उनका वर्चस्व खतरे में पड़ जाएगा? जवाब: वर्चस्व किसी का कायम नहीं होता है। जरूरत है आपस में तालमेल मिलाकर चलने का। समीकरण का युग चल रहा है। सभी पार्टियां समीकरण बनाती है और हमें लगता है कि सभी को ध्यान में रखते हुए समीकरण बनाकर चलना चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि कौन से लोग अच्छे हैं जोपार्टी, समाज देश का विकास कर सकते हैं। सवाल: दिल्ली विधानसभा चुनाव अब काफी नजदीक चुका है। ऐसे में आपको लगता है कि मुख्य पार्टियां पूर्वांचलियों को लेकर एकजुट हो रही है? जवाब: एकजुट हो नहीं रही है, एकजुट होती रही हैं और आगे भी होती रहेंगी/ अब वक्त गया है कि हम पूर्वांचली भी एकजुट हों और विधानसभा रूपी भवन को हम मिलकर तैयार करें जिससे कि हम अपनी आवाज को बुलंद कर सके। सवाल: जब मुख्य पार्टियां आप जैसों को टिकट नहीं देती हैं तो क्या निर्दलीय के बजाय किसी छोटी पार्टियों के दामन थाम कर चुनाव लड़ना चाहिए? जवाब: यह लोकतंत्र है। लोगों को अधिकार है कि वे चुनाव लड़ें, चाहे वे जैसे लड़े। जागरूक जनता को होना चाहिए, नेताओं को नहीं। जैसे की महंगाई बढ़ती है तो हम कहते हैं कि नेता दोषी है। लेकिन नहीं, नेता नहीं हम जनता दोषी हैं। जनता का जागरूक होना बहुत जरूरी है। अगर जनता कोअपनी आवाज, अपने दर्द को पहचानने वाला चाहिए तो उसे खुद का प्रतिनिधित्व चुनना होगा जो उसके दर्द को समझ सके कि पार्टी के प्रतिनिधित्व को। सबसे बड़ा व्यक्तित्व होता है कि पार्टी। सवाल: पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्वांचली के नाम पर महाबल मिश्रा को उतारा गया था और वे जीते भी। इसे आप किस नजरिए से देखते हैं।? जवाब: दिल्ली में लोकसभा सीटों की संख्या 7 है। उन्में से एक सीट पूर्वांचलियों को मिली है, इसके लिए बड़ी पार्टियों का मैं धन्यवाद करता हूं। पूर्वांचलियों ने एकजुट होकर महाबल मिश्रा को जिताया जो हमारे लिए सम्मान की बात है। इसी प्रकार बीजेपी को भी कम से कम एक सीट देना चाहिएथा। सवाल: आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए आप दोनों मुख्य पार्टियों से क्या कहना चाहेंगे? जवाब: दोनों पार्टियों से आग्रह है कि पूर्वांचिलयों की अनदेखी करना बंद करें। दिल्ली में पूर्वांचली अल्पसंख्यक नहीं बहुसंख्यक की स्थिति में है। अल्पसंख्यक की वर्चस्वता अधिक है जबकि बहुसंख्यक का काफी कम। इसे नजरअंदाज करें और पूर्वांचली को समुचित प्रतिनिधत्व दें। 

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