Aapda Se Sabak Len
आपदा से सबक लें
उत्तराखंड में आई प्रलय ने हजारों की जानें ले ली तो हजारों लापता और अरबों रूपए की धन-संपत्ति नष्ट हो गई। अनुमान है कि राज्य के पर्यटन उद्योग को 12,000 करोड़ रूपए का नुकसान हुआ है। अभी भी राज्य में हालात सुधरने में काफी समय लगेगा। राहतकर्मी कब तक वहां राहत काकाम करते रहेंगे, इसका अभी कोई अता-पता नहीं है। इस हालात में भी राजनीति ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। हकीकत की बात करें तो राज्य में आई प्राकृतिक आपदा हम सबके लिए चेतावनी भर है। जिस प्रकार से प्रकृति ने राज्यमें उत्पाद मचाया है, वह निःसंदेह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर इस आपदा से कैसे निपटा जाए?
इस आपदा के कारणों को टटोलने की कोशिश करें तो हम पाते हैं कि प्रकृति में मानव का दखल लगातार बढ़ा है जिसके कारण प्रकृति एवं मानव के बीच का संतुलन असंतुलित होता जा रहा है। इस तरह की आपदा हमें सावधान करते हुए इशारा करती है कि ‘ऐ मानव रूक जाओ, अपनीविलासिता और आधुनिकता की होड़ में हमें समाप्त मत करो, अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होगा।’
देखा जाए तो दुनिया की आधी आबादी आपदा क्षेत्र में रहती है, वहीं भारत में 35 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में से 25 राज्य किसी ना किसी किस्म की प्राकृतिक आपदा के खतरे की जद में है। वहीं 7500 किलोमीटर तटीय क्षेत्र ऐसे हैं जो समुद्री तूफानों, सुनामी और भूकंप के लिहाज से बेहदसंवेदनशील है।
हम प्रकृति व पर्यावरण को नजरअंदाज कर पहाड़ों को काटकर, नदियों के रूख को मोड़कर सड़क, बांध एवं अन्य निर्माण कार्य नहीं कर सकते। निर्माण कार्य करना ही है तो वैज्ञानिक तरीके से निर्माण संबंधी कायदे-कानून को पालन करते हुए इसे अंजाम दिया जाना चाहिए जिससे कि प्रकृति कोनुकसान न पहुंचे। साथ ही यह कोशिश रहे कि जितना प्रकृति से लिया जाए, उतना ही कम से कम प्रकृति को लौटा भी दिया जाए। अन्यथा इस तरह की आपदा हमारे लिए मात्र सबक बन कर रह जाएगी और प्रकृति का प्रलय बढ़ता ही चला जाएगा।
इस आपदा के कारणों को टटोलने की कोशिश करें तो हम पाते हैं कि प्रकृति में मानव का दखल लगातार बढ़ा है जिसके कारण प्रकृति एवं मानव के बीच का संतुलन असंतुलित होता जा रहा है। इस तरह की आपदा हमें सावधान करते हुए इशारा करती है कि ‘ऐ मानव रूक जाओ, अपनीविलासिता और आधुनिकता की होड़ में हमें समाप्त मत करो, अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होगा।’
देखा जाए तो दुनिया की आधी आबादी आपदा क्षेत्र में रहती है, वहीं भारत में 35 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में से 25 राज्य किसी ना किसी किस्म की प्राकृतिक आपदा के खतरे की जद में है। वहीं 7500 किलोमीटर तटीय क्षेत्र ऐसे हैं जो समुद्री तूफानों, सुनामी और भूकंप के लिहाज से बेहदसंवेदनशील है।
हम प्रकृति व पर्यावरण को नजरअंदाज कर पहाड़ों को काटकर, नदियों के रूख को मोड़कर सड़क, बांध एवं अन्य निर्माण कार्य नहीं कर सकते। निर्माण कार्य करना ही है तो वैज्ञानिक तरीके से निर्माण संबंधी कायदे-कानून को पालन करते हुए इसे अंजाम दिया जाना चाहिए जिससे कि प्रकृति कोनुकसान न पहुंचे। साथ ही यह कोशिश रहे कि जितना प्रकृति से लिया जाए, उतना ही कम से कम प्रकृति को लौटा भी दिया जाए। अन्यथा इस तरह की आपदा हमारे लिए मात्र सबक बन कर रह जाएगी और प्रकृति का प्रलय बढ़ता ही चला जाएगा।
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