नृत्य के नाम पर अश्लीलता परोसना ‘शर्मनाक’ (29 अप्रैल - अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस विशेष) - सुस्वागतम्
Buy Pixy Template blogger

नृत्य के नाम पर अश्लीलता परोसना ‘शर्मनाक’ (29 अप्रैल - अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस विशेष)


निर्भय कर्ण
एक कथन है कि मनुष्य जब खुश होता है, तो वह नृत्य करने लगता है। जड़ हो या चेतन सब आनंद में विभोर होकर अपने अंदर के तनाव या विषाद को नृत्य कर समाप्त कर सकता है। इसलिए तो जिसे भी नाचना न आता है, उनके भी हाथ-पैर थिरकने लगते हैं और अपने ख़ुशी का इजहार करता है।

नृत्य की भी कई शैली होती है। धरती पर हर देश, हर प्रदेश और हर क्षेत्र की अपनी खास नृत्य शैली होती है जिसकी अपनी अलग पहचान होती है। साधारणतया शास्त्रीय नृत्य’, ‘लोक नृत्यऔर आधुनिक नृत्यजैसी तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है जिसके अंतर्गत भरतनाट्यम, कथकली, कत्थक, ओडिसी, मणिपुरी, मोहनी अट्टम, कुची पुडी, भांगड़ा, भवई, बिहू, गरबा, छाऊ, जात्रा, घूमर, पण्डवानी आदि को रखा गया है। जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता का अलख जगाने के उद्देश्य से ही प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस मनाया जाता है। 1982 में यूनेस्को के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्था की सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय नाच समिति ने 29 अप्रैल को नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया। कहा जाता है कि एक महान रिफार्मर जीन जार्ज नावेरे के जन्म की स्मृति में यह दिन अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

नृत्यका इतिहास तो उतना ही पुराना हैं जितना कि इस पृथ्वी का निर्माण। कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की विनती पर ब्रह्माजी ने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है। इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया। जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरत मुनि के सौ पुत्रों ने किया।
1. https://www.launchmantra.com/2019/04/international-dance-day.html
2. http://amarsandesh.com/serving-pornography-in-the-name-of-dance-is-shameful/

जब नृत्यकलाकी उत्पत्ति की बात होती है तो सहज ही हमारे मन-मस्तिष्क में भगवान शिवऔर उनका तांडव नृत्यआ जाता है। भगवान शिव को नृत्य के अवतार नटराजके रूप में भी जाना जाता है। जहाँ नटयानि कि कला और राजयानि कि राजासमझा जाता है।
नृत्य एक सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम है जो पृथ्वी और आकाश से संवाद करती है जो  खुशी, भय और हमारी आकांक्षाओं को व्यक्त करती है। यह बात सत्य है कि नृत्य भले ही मानव के खुशी का माध्यम रहा हो, लेकिन कालांतर में यह सभ्यता-संस्कृति का वाहक भी बन गया।
              लेकिन वर्तमान परिदृश्य में नृत्य के नाम पर अश्लीलता परोसा जा रहा है, जो कि चिंतनीय व शर्मनाक है। यह न केवल इन परंपरागत शैलियों को धूमिल कर रहा है बल्कि विदेशी/वेस्टर्न डांसके चक्कर में हम अपनी पहचान के नृत्यों से दूर होते जा रहे हैं। फिल्म हो या टीवी के कार्यक्रम सभी जगह फूहड़ नाच का नंगा प्रदर्शन किए जाने की परंपरा ने जोर पकड़ लिया है। गानों, फिल्मों, कार्यक्रमों सबमें अश्लीलता इस कदर घर करती जा रही है कि आप अपने परिवार के साथ देख ही नहीं सकते। और रही सही कसर भोजपूरी गानों एवं फिल्मों ने कर दिया है। अधिकतर भोजपूरी गाने, एलबम और सिनेमा में अश्लीलता से भरपूर होता है। भोजपूरी गाना सुनने की ही बात कर लें तो उन गानों के हर शब्द में अश्लीलता कूट-कूट कर भरा होता हैै। जब हम-आप परिवार के साथ मिलकर गाना नहीं सुन सकते तो यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन गानों के सीनों का क्या हाल होगा। ऊपर से अश्लीलता का कम्पीटिशन इस कदर होता जा रहा है कि एक से एक हिट एलबम, गाने बनते हैं। अश्लीलता को दिखाने का होड़ इस कदर है कि मत पूछिए। इस बारे में कलाकारों, गायकों से पूछ लिया जाता है तो छूटते ही कहते हैं कि यह तो पब्लिक डिमांड है। जनता यही सब देखना पसंद करती है। ऐसा न परोसें तो गाना हिट ही नहीं होगा।
अब ऐसे कलाकारों को कौन समझाए कि अश्लीलता की शुरुआत तो फिल्मों व गानों के जरिए ही हमारे समाज में फैला। जिसे रोकने का कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया। ऐसे युवाओं के चक्कर में हमारा पूरा समाज दूषित होता जा रहा है। मान-मर्यादा सब छिन्न-भिन्न होता जा रहा है। यदि आज भी हम नहीं सचेते तो न जाने हमारे समाज की दशा और दिशा क्या होगी। ऐसा नहीं है कि ऐसे नृत्यों का असर नहीं हो रहा है। पिछले 5-10 सालों में जिस प्रकार का नृत्य व गाने प्रस्तुत किया जाता है, उसने तो हमारे समाज के ताना-बाना को ही हिलाकर रख दिया है। ये मन को शांत करने के बजाय अशांत ही कर देता है।
समय परिवर्तन के साथ ही लोकपरंपराओं और लोककलाओं में भी काफी बदलाव आया है। नृत्य को लोकलाओं में नौटंकी के नाम से जाना जाता है। पहले नौटंकी को देश-दुनिया की जानकरी प्रदान करने, समाजिक विसंगतियों एवं कुरीतियों से परिचित कराने और सस्ता-स्वस्थ मनोरंजन का साधन माना जाता था। लेकिन अब तो नौटंकी सिर्फ मनोरंजन का साधन रह गई है और वह भी बेहद अश्लील मनोरंजन का। जिसमें कोई महिला कलाकार क्षेत्रीय भाषा (भोजपुरी) पर नृत्य करती है। इस महिला कलाकार की भाव भंगिमाएँ बेहद भोंडी होती हैं और ज्यादातर अश्लील भी। बीच-बीच में महिला कलाकार को भीड़ के अश्लील हरकतों का और भी अधिक अश्लीलता के साथ जवाब देना, या भीड़ की हरकतों को दोहराना होता है।
इन गानों में न सिर्फ बहुत ही घटिया दर्जे के द्विअर्थी संवाद होते है अपितु इनमें हीरोइन का नृत्य और हाव-भाव अश्लीलता की पराकाष्ठा को पार कर देते हैं। नारी की गरिमा को तार-तार करते ये घटिया गाने ना सिर्फ हिट होते है बल्कि आजकल फिल्मों को सफल बनाने का सबसे आसान तरीका बन गए है।
इस लिहाज से तो सामाजिक मूल्यों में गिरावट, बदलती परिस्थितियाँ, व्यक्तिगत जीवन के मूल्यों में होते बदलाव को देखते हुए इस प्रकार की परंपराओं का अपने वास्तविक रूप में वापस लौटना अब संभव नहीं लगता है।
विश्वस्तर पर हर एक व्यक्ति को यह जानने की आवश्यकता है कि उसके राष्ट्र की पहचान उसकी अपनी कला को किस तरह सरंक्षित किया जा सकता है और यह उनका दायित्व भी है। आइए हम प्रण लें कि गाने में अपने आपको और अपनी देश की इस पुरातन नृत्य शैलियों को गुम न होने दें। क्योंकि जिस तरह का माहौल नृत्य को लेकर आजकल बना हुआ है। उससे सारा जगत विस्मित और चिंतित है। और यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वे जल्द से जल्द सचेत होकर अपनी कलाओं की शुद्धता बरकरार रखने के साथ-साथ लोगों के मन में इसके प्रति चेतना भी जगाये जिससे सभी जागरूक होकर इसके प्रति गंभीरता से कदम उठा सके। ताकि हमारा समाज एक विकसित और सभ्य समाज की तरह जी सके।

Previous article
Next article

Leave Comments

Post a Comment

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads