World Toilet day- 19 November - सुस्वागतम्
Buy Pixy Template blogger

World Toilet day- 19 November


                  बुनियादी सुविधाओं से वंचित आधी आबादी

आधुनिक जीवनशैली से पनप रहे रोगों के पांव पसारने और जलवायु परिर्वतन से बीमारियों के बढ़ने के खतरे के बीच देश अब भी बुनियादी और आधारभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा है। एक तरफ जहां भारत आजादी के बाद से लगातार तरक्की किया है तो वहीं दूसरी तरफ भारत की आधी आबादी अभी तक बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। यह एक चिंतनीय समस्या है।
                गांव तो गांव शहर में भी लोगों को खुलेआम शौच करते देखा जा सकता है।  खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच करना एक पुरानी अस्वस्थ्य आदत रहा है। विकसित, शिक्षित और आधुनिक शहर का इस समस्या से जुझते नजर आना आश्चर्य की बात है। वैसे गांवों के अपेक्षा शहरों में शौच की सुविधा बेहतर है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि असली भारत गांवों में ही बसता है क्यूंकि आधी से अधिक आबादी ग्रामीणों में ही रहती है।
                     शौच की असुविधा का दुष्परिणाम सबसे अधिक महिलाओं का ही भुगतना पड़ता है, जिन्हें शौच के लिए अंधकार होने का इंतजार करना पडता है। इसके अलावा सांप, बिच्छू आदि के काटने का तथा उनके सम्मान का खतरा भी बना रहता हैं जिसे नजरअंदाज करना दूरगामी परिणाम का संकेत है। वहीं बच्चों की बात करें तो यह भी वयस्क के मल की तरह हानिकारक होता है। बच्चों में पोलियों का वायरस भी खुले में किये गये शौच के माध्यम से फैलता है। कर्इ लोगों को स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के संबंध के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है परन्तु बहुत सारे अध्ययनो से पता चला है कि 80 प्रतिशत बीमारियां अस्वच्छता के कारण ही होता है। एक ग्राम मल में एक करोड़ वायरस तथा 10 लाख बैक्टीरिया होते है। ये वायरस एवं बैक्टीरिया मक्खी के साथ भोजन के माध्यम से मनुष्यों में प्रवेश कर बीमारी फैलाते है।
                      घर तो घर स्कूलों में भी शौच की सुविधा पर्याप्त और सुविधाजनक नहीं है। चाहे वह ग्रामीण विधालय की बात करें या फिर शहर के विधालय की। कर्इ अध्ययनों से ये साबित होता है कि अगर विधालय में शौचालय ना हो तो माता-पिता लड़कियों को पढ़ने नहीं भेजते। जिसे हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना और कहा कि बुनियादी सुविधाओं का अभाव संविधान में दिए गए मुत और जरुरी शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। इसी वर्ष अप्रैल में राइट टू एजुकेशन फोरम नामक संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि पूरे भारत में 95 प्रतिशत विधालयों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इस अध्ययन में पाया गया कि दस में से एक विधालय में पीने का पानी नहीं होता है और 40 फीसदी विधालयों में शौचालय ही मौजूद नहीं होता। अन्य 40 प्रतिशत विधालयों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय का प्रबंध नहीं होता।  एक आकलन के मुताबिक दुनिया भर की करीब आधी आबादी आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर है और इसका एक बड़ा हिस्सा एशिया में ही रहता है। हमारे यहां 1981 में करीब एक फीसद लोगों के पास शौचालय की सुविधा मौजूद थी। हालांकि बीते 27 सालों में इस आंकड़े में जबरदस्त इजाफा हुआ है और आज वर्ष 2008 में लगभग 50 फीसद लोगों के पास शौचालय की सुविधा है। लेकिन विश्व फलक की बात तो दूर एशियार्इ फलक पर ही हम महज अफगानिस्तान और पाकिस्तान से इस मामले में बेहतर हैं।        
                   नवीनतम जनगणना आंकड़ों के अनुसार, भारत के 1.2 अरब लोगों में से लगभग आधे घर में शौचालय नहीं है। जारी आंकड़ों के मुताबिक 246,600,000 घरों में से केवल 46.9 प्रतिशत शौचालय है, जबकि 49.8 प्रतिशत खुले में शौच करते हैं शेष 3.2 प्रतिशत सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करते हैंं।
जनगणना मकान, घरेलू सुविधाओं और संपतित पर 2011 आंकड़ों से पता चलता है कि गरीबों की एक बड़ी आबादी है जो बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के 77 प्रतिशत घरों में कोई शौचालय की सुविधा नहीं है, जबकि यही आंकड़ा उड़ीसा और बिहार में क्रमश: 76.6 और 75.8 प्रतिशत है। ये सर्वविदित है कि इन बुनियादी समस्याओं को सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े, अल्पसंख्यक लोग झेलते हैं, जो कि अत्यंत निर्धन होते हैं। 
                इन आंकड़ों पर गौर करें तो 2008 वाली सिथति अब भी बरकरार है यानि कि  2008 के बाद शौचालय की असुविधा को निपटाने का काम अधर में अटका पड़ा है अथवा केवल इसके नाम पर केवल खानापुर्ति कर दी जाती है। इस बात पर चिंता व्यक्त करते हुए तत्कालीन महापंजीयक और जनगणना आयुक्त सी चंद्रमौली ने आंकडें जारी करते हुए कहा था कि जनसंख्या का लगभग आधी आबादी का खुले में शौच करना देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।
               इस समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक वर्ष 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस मनाया जाता है। जिसका मुख्य उíेश्य होता है लोगों को इसके बारे में जागरुक किया जाए और शौचालय के निर्माण और उपयोग हेतु लोगों को प्रेरित किया जाए, जो बुनियादी सुविधाओं की जड़ है।
इस बात को मानने से हमें गुरेज नहीं करना चाहिए कि सरकार लोगों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कइ योजनाएं चला रही है। लेकिन ये योजनाएं जमीनी कम और कागजी ज्यादा तक ही सिमट कर रह जाता है जिसकी झलक नवीनतम जनगणना आंकड़ों से मिल जाता है। जरूरत इस बात की है कि सरकार इस विषय में आगे बढ़कर इन बुनियादी सुविधाओं को लोगों तक पहुंचाएं। जागरुकता के स्तर पर भी काफी काम करने की जरूरत है। साथ में जो वर्ग आर्थिक अभाव के कारण इन सुविधाओं से दूर है उसके लिए सरकारी स्तर पर प्रबंध किए जाने की जमीनी जरूरत है।
                अगर हमें स्वस्थ और सुंदर भारत की कल्पना को साकार करना है तो उसकी शुरुआत हमें मूल चीजें यानि की शौचालय की सुविधा अधिक से अधिक प्रदान करके करनी होगी। यह तभी हो सकेगा जब ग्रामीणों की माली दशा को सुधारा जाए और सरकारी योजनाओं को र्इमानदारी पूर्वक लागू करवाकर लोगों को ये सुविधाएं प्रदान की जाए।
Previous article
Next article

Leave Comments

Post a Comment

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads