Yuvaon me Hatasha aur Badhawasi ka Karak Kaun?
12 January- National Youth Day
युवाओं में हताशा और बदहवासी का कारक कौन?
निर्भय कर्ण
युवा ही देश का धड़कन होता है। आखिर हो भी क्यों न क्योंकि युवा ही क्रांति करता है और हर असंभव काम को भी संभव कर पाने में सक्षम होता है। भारत हो या नेपाल या अन्यत्र सभी जगह युवा नौकरी को लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं। इससे कई सवाल हमारे जेहन में उठते रहते हैं कि आखिर इस बेरोजगारी के लिए कौन जिम्मेदार है? यदि इसी प्रकार युवाओं में हताशा और बदहवासी जारी रही तो देश का भविष्य क्या होगा?
स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर भारत में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 12 अगस्त को विश्व युवा दिवस मनाया जाता है। विश्व युवा दिवस युवा कैथोलिक चर्च द्वारा स्थापित एक दिवस है। यह दिवस ‘पोप जान पाल द्वितीय’ ने सन् 1986 में शुरू किया था। युवा की उम्र के बात करें, तो दुनिया के अधिकांश देशों में युवावस्था की शुरुआत 15 वर्ष से मानी जाती है। हांगकांग और नाईजीरिया जैसे ही कुछ देश हैं जो छः वर्ष की अवस्था को भी युवा वर्ग की श्रेणी में मानते हैं। जहां तक युवावस्था की अधिकतम आयु का सवाल है उसमें मलेशिया 40 वर्ष को मानते हुए सबसे आगे है। वहीं भारत में राष्ट्रीय युवा नीति के अनुसार 13-35 साल का युवक युवा है।
युवा किसी धर्म, जाति या रंग-भेद पर आधारित नहीं होता बल्कि ये सभी पूवर्जों व समाज द्वारा इन पर थोपा जाता है। इन्हीं सब वजह से भी राजनीति युवाओं के बीच अपना आकर्षण दिन प्रति दिन खोती जा रही है। इसके और भी कई बड़े मुख्य कारण हैं जैसे- बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, राजनीति में अपराधीकरण, जनता के हकों के प्रति उदासीनता, जवाबदेही का अभाव, वगैरह। देखें तो राजनीतिक पार्टियां युवाओं का हमदर्द होने का तो दम भरती है लेकिन बेरोजगारी का दंश झेल रहे इन युवाओं को इस परेशानी की चिंता शायद ही किसी को होता है।
हाल ही में नेपाल में हुए चुनावों का आकलन करें तो पता चलेगा कि इस चुनाव में युवाओं ने काफी बढ-चढ़कर हिस्सा लिया। आखिर हो भी क्यों न, क्योंकि यहां पर कुल आबादी का आधी से अधिक जनसंख्या 25 साल से नीचे का है। वहीं भारत में 72.5 करोड़ मतदाताओं में से 40 करोड़ मतदाताओं की उम्र 18-35 वर्ष है। यानि कि युवाओं की जनसंख्या दोनों देशों में आधे से भी काफी अधिक है। इसी वजह से किसी भी दल या गठबंधन का झुकाव युवाओं की ओर अधिक होता है क्योंकि चुनाव का परिणाम बदलने में ये सबसे अधिक सक्षम होते हैं। रोजगार की स्थिति को लेकर इनके अंदर गुस्सा है इसके बावजूद वोट की ताकत में इनका यकीन बरकरार है। नेपाल व भारत के पांच राज्यों में हुए हालिया चुनाव में राजनीतिक पार्टियों ने युवाओं को अपनी ओर करने का एक सफल प्रयास किया था। अब देखना यह होगा कि आने वाली सरकार युवाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर कितनी सक्रिय होकर उनकी समस्याओं को दूर करती है।
‘‘युवा होने का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि वह भावनाओं का पुंज और उत्साह का स्त्रोत हो’’, गणेश शंकर के इस कथन को हमेशा से ही युवा पीढ़ी साकार करते रहे हैं क्योंकि ये आशावाद से ओत-प्रोत होते हैं। देशों के इतिहास का निर्माण युवाओं ने ही किया है, किन्तु स्वच्छ या स्वस्थ मन, तन तथा चिंतन का आधार लेकर आज देश के युवा वर्ग में जो दिशाहीनता, विद्रोह, अपराधी, मनोवृति, और प्रलोभनों के प्रति सहज समर्पण दिखाई दे रहा है, आने वाले भीषण संकट का संकेत है। अनुशासित, शिक्षित, स्वाभिमानी, जागरूक और निश्पक्ष चिंतन करने वाले युवा स्वयं ही देष को अपने वाले विनाष से बचा सकते हैं। उनको तुच्छ तत्कालिक लाभों में उलझाने वाले कुटिल लोगों चालों को समझना चाहिए और अपने भविष्य निर्माण के लिए यथार्थवादी तरीकों से डटकर संघर्ष करना चाहिए।
नेपाल की जनसंख्या शहरी क्षेत्रों के अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक निवास करती है। यहां पर पांच नेपाली में चार ग्रामीण क्षेत्रों में गुजर-बसर करते हैं। यानि कि नेपाल में शहरों की अपेक्षा गांवों में सबसे अधिक बेराजगार रहते हैं। यह सर्वविदित है कि शहरों में गांवों की अपेक्षा रोजगार अधिक उपलब्ध होता है। वहीं भारत में युवकों में बेराजगारी दर: युवक-10.9(ग्रामीण), 10.5 फीसदी(शहरी) और युवतियां-12 (ग्रामीण), 18.9 फीसदी(शहरी) है। जिस तेजी से युवाओं की संख्या में इजाफा हो रहा है उसी अनुपात में बेराजगारी में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। इस असंतुलन को शीघ्रातिशीघ्र संतुलित किया जाना आवश्यक है। रोजगार की तलाश में ये युवा अपना गांव, शहर ही नहीं बल्कि देश तक छोड़कर अन्यत्र पलायन कर जाते हैं। जहां कुछ तो सफल हो पाते हैं बाकी लोगों को शोषण का ही शिकार होना पड़ता है और पिछड़े ही रहते हैं। ये कहना कि विदेश जाकर उनकी हालत काफी अच्छी हो जाती है, सरासर नाइंसाफी होगी।
युवाओं की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए सभी सरकारों को बेरोजगारी के अनुपात में रोजगारों का सृजन करना होगा। अधिक से अधिक युवा शक्तियों का उपयोग कर देश के विकास को बढ़ाना होगा। इसके साथ ही शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी व रोजगार परक शिक्षा को बढ़ावा, राजनीति में परिवर्तन (देश की वर्तमान परिवेश के अनुसार), युवाओं का पलायन, शहर से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर ध्यान संबंधित मुद्दों पर रणनीतिकारों को जोर देते हुए इसे क्रियांवित कर युवाओं को सही दिशा में ले जाना होगा। हमारे नीति-निर्धारकों को ऐसी नीति बनानी होगी जिससे युवाओं का विकास अवरूद्ध न हो। साथ-साथ ही युवाओं को अपनी शक्ति पहचानना होगा और स्वामी विवेकानंद की उस उक्ति को याद रखते हुए अपना भविष्य उज्जवल बनाना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘जागें, उठें और न रुकें जब तक कि लक्ष्य तक न पहुंच जाएं।’’
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