Apnr apne swarth ke liye fir se ekjut hua Janta Dal - सुस्वागतम्
Buy Pixy Template blogger

Apnr apne swarth ke liye fir se ekjut hua Janta Dal

अपने-अपने स्वार्थ के लिए फिर से एकजुट हुआ जनता दल
निर्भय कर्ण
गत् 6 नवंबर, 2014 को सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव के दिल्ली स्थित आवास पर जनता पार्टी के साथी रहे सपा,
आरजेडी, जेडीयू, जेडीएस और आईएनएलडी की बैठक ने महामोर्चा की कवायद को तेज कर दिया था और अब 4 दिसंबर, 2014 को फिर से हुए इस बैठक ने लगभग महामोर्चा को अंतिम रूप दे दिया है जिसमें मुलायम सिंह यादव को इसकी कमान सौंपी गयी है। यह महामोर्चा एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में तब्दील हो सकती है लेकिन यह तय है कि महामोर्चा के नाम पर अपने-अपने स्वार्थ के लिए फिर से जनता दल एकजुट होने का असफल प्रयास कर रही है। असफल प्रयास इसलिए क्यूंकि सभी दलों की सियासी मजबूरियां है जो सबको एकजुट कर रही है और यह महामोर्चा कब टूट जाएगी, कोई नहीं जानता। इस बात को बखूबी समझते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने चुटकी लेते हुए कहा कि लोकतंत्र में सभी दलों को किसी भी मुद्दे पर एकजुट होने या अलग होने की छूट है, लेकिन जनता दल परिवार का डीएनए संकेत देता है कि वे एक साथ आएंगे और फिर अलग हो जाएंगे। कुछ ऐसी ही बात कांग्रेस नेता शकील यादव का कहना है कि पुराने समाजवादी अपनी विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं, वे ज्यादा दिनों तक अलग नहीं रह सकते, लेकिन वे एक साल से ज्यादा साथ भी नहीं रह सकते। 
गौर करें तो इस ताजा बैठक का नतीजा यही निकला कि जनता दल का हिस्सा रही ये पार्टियां फिर से एक होंगी। विलय की रूपरेखा तय करने की जिम्मेदारी सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को सौंपी गयी है। सबसे मुश्किल तब होगा जब लालू यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव की भूमिका एवं अन्य नेताओं की जवाबदेही तय की जाएगी। क्योंकि ऐसी संभावना है कि उस समय अपने-अपने स्वार्थ के चलते कहीं आपसी मनमुटाव न शुरू हो जाए। इसकी असली शुरुआत बिहार में 2015 में होने जा रहे चुनाव से पहले ही देखने को मिलने लगेगा जिसमें बिहार में इन नेताओं की अहम आगे आड़े आएगी और महामोर्चा की नींव कमजोर होगी। क्योंकि एक म्यान में दो तलवारें तो साथ रह नहीं सकती। याद रहे कि लालू यादव के कुशासन को वर्षों तक जमकर कोसने वाले नीतीश कुमार भाजपा के सहयोग से बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे लेकिन मोदी के पीएम उम्मीदवार चुने जाने के बाद नीतीश कुमार (जदयू) एनडीए से अलग हो गए। फिलहाल जदयू राजद की शरण में है लेकिन यह नौटंकी कब तक चलेगा, देखने वाली बात होगी। क्योंकि लालू, नीतीश और शरद को समय-समय पर कोसते रहे हैं और यह तय है कि बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए दोनों में फिर से टकराव होने के आसार हैं। गौर करें तो क्षेत्रीय दल का नेतृत्व व्यक्तिवाद और परिवारवाद की धूरी पर टिका है। इन दलों का मुद्दा अकसर क्षेत्रीय यानि की स्थानीय ही होता है।
               इस बैठक का निचोड़ यह भी निकाला जा सकता है कि 2013 में बिहार में विधान सभा चुनाव तो 2017 में यूपी में होने जा रहे विधान सभा चुनाव में अपनी सरकार को बनाए रखने व बचाने के लिए यह सब किया जा रहा है। जहां यूपी में मुलायम सिंह की सपा तो बिहार में नीतीश की पार्टी जदयू व लालू प्रसाद यादव की राजद को भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है। भाजपा हिन्दुत्वके अपने बुनियादी विचारों पर कायम रहते हुए उसने नए ढ़ंग की सोशल-इंजीनियरिंग के जरिए दलितों-पिछड़ों में भी अपनी जगह बनाने में सफल हो रही है। मोदी लहर का आलम यह है कि अब तक हरियाणा और महाराष्ट्र सहित कुल नौ राज्यों में भाजपा व उसके सहयोगी की सरकार बन चुकी है। इस परिस्थिति को सभी दल बखूबी समझ रहे हैं। इसलिए समाजवाद में विश्वास रखने वाली पार्टियां एक-दूसरे के करीब आ रही है। ज्ञात रहे कि समाजवाद के नायक जय प्रकाश नारायण के अनुयायी लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव ये सभी तमाम नेता रहे हैं लेकिन सत्ता के लोभ ने उन्हें जेपी की विचाराधारा से बिल्कुल अलग कर दिया। सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाली ये पाटियां अब तक बिहार और यूपी में लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद समाज को मजबूत करने के बजाय नुकसान ही पहुंचाती रही। एक तरफ वे सत्ता का सुख भोगते रहे तो दूसरी ओर राज्य विकास के बजाय पिछड़ता चला गया। यूपी हो या बिहार, यहां कितना विकास हो पाया, यह सभी जानते हैं। इनके घनघोर जातिवाद और परिवारवाद पर चोट करते हुए नरेंद्र मोदी ने सभी को लोक सभा चुनाव में धूल चटा दी जिसका बुरा हाल हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में भी देखा गया।
                महामोर्चा की इस महाबैठक के बारे में विशेष जानकारी देते हुए नीतीश कुमार ने बताया कि ‘‘अगली मीटिंग 22 दिसंबर को होगी। इसी दिन ये सभी पार्टियां दिल्ली में कालेधन, किसानों और बेरोजगारी की समस्या पर धरना देंगी।’’ अब आनेवाला समय ही बताएगा कि महामोर्चा किस पार्टी में तब्दील होने जा रही है और वह पार्टी भाजपा को रोकने में किस हद तक सफल होगी? वहीं क्षेत्रीय दलों व इस महामोर्चा का भविश्य बहुत हद तक मोदी सरकार के कामकाज पर भी निर्भर करेगा।
                  

   
Previous article
Next article

Leave Comments

Post a Comment

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads