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Fashion ke roop me Tatoo ke prati badhati Diwangi

फैशन के रूप में टैटू के प्रति बढ़ती दीवानगी

निर्भय कुमार कर्ण
                विराटनगर, नेपाल की रहनेवाली बबीता दिल्ली से पढ़ाई पूरी कर घर लौटी तो बहुत ही खुश नजर आ रही थी। खुशी का कारण केवल यह नहीं था कि वह घर बहुत दिनों के बाद आयी है, बल्कि खुशी का एक और प्रमुख कारण था सखी-सहेली द्वारा कौतुहूलता से उसके शरीर पर मौजूद टैटू/गोदना के बारे में सवाल पर सवाल पूछा जाना। कोई विस्मय की मुद्रा में तो कोई खुशी के मुद्रा में सवाल कर रहा
था क्यूंकि यह टैटू कोई पुराने तर्ज पर आधारित नहीं बल्कि बिल्कुल ही बबीता की तरह आधुनिकतम था। बबीता के गर्दन व हाथों पर किसी देवी-देवता का चित्र टैटू के रूप में नहीं उकेरा गया था बल्कि अंग्रेजी गायक ब्रिटनी स्पियर्स का चित्र था। जिसे उसके पड़ोसी तो बिल्कुल ही नहीं पहचान पायें उसमें जो एकाध नए युवा वर्ग के थे, वे उस टैटू को पहचान पाये। बबीता ने सभी के कौतुहूलता को शांत करते हुए बतायी कि यह टैटू कोई देवी-देवता का नहीं बल्कि मशहूर पॉप गायक ब्रिटनी स्पियर्स का है। कुछ समय पहले वह दिल्ली में  प्रोग्राम करने आया था जिसे देखने मैं भी गयी थी। तभी से मैं उसका बहुत बड़ी प्रशंसक बन गयी और यह टैटू अपने हाथ और गर्दन पर गुदवायी।
                वर्तमान समय में टैटू का आकर्षण व फैशन इस कदर बढ़ गया है कि फिल्मी सितारे से लेकर खिलाड़ी तक अपने शरीर के अंगों पर टैटू गुदवाना पसंद करते हैं जिसमें हालीवुड की अदाकारा एंजलीना जूली का नाम प्रमुखता से आता है जो अपने शरीर पर दर्जनों टैटू बनवा रखे हैं। आज के युवा इन सितारों का अनुसरण तेजी से करते हैं क्योंकि ये सितारे यूथ के आइकान माने जाते हैं। टैटू के दीवानगी का आलम यह है कि अमेरिकी नागरिक वाल्टर स्टिगलिट्सने अपने शरीर पर 5,500 से ज्यादा गोदना गुदवाकर अपना नाम गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्डसमें दर्ज करवा दिया।
                चूंकि विदेशों में गोदनागुदवाने के लिए निश्चित आयु निर्धारित है और टैटू पार्लरोंको अपना पंजीकरण करवाना पड़ता है। जबकि नेपाल, भारत सहित अधिकतर एशियाई देशों में ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है। इन देशों में इसके लिए न ही कोई उम्र निर्धारित है और न ही कोई नियम-कानून। यहां पांच साल से लेकर बुजुर्ग तक गोदना गुदवाते हैं। इतिहास के पन्ने को पलट कर देखें तो वर्षों पहले विश्व में इस कला के असली प्रमाण ईसा से 1300 साल से पहले मिस्त्र में, 300 वर्ष ईसा पूर्व साइबेरिया के कब्रिस्तान में मिलता है। यह माना जाता है कि गेादना आदिवासियों का आभूषण होता है जो धीरे-धीरे अन्य जातियों व समुदायों में फैल गया। गोदना गुदवाने के पीछे कई अलग-अलग मिथक विद्यमान है। इस बारे में बैगा जन जातियों का मानना है कि एक राजा बहुत ही कामुक प्रवृति का था। उसे हर रात एक नई लड़की चाहिए होती थी। एक बार जिस लड़की का वह उपभोग कर लेता था उसके शरीर पर गोदने की सूई से निशान बना देता। अपनी बेटियों को उस नरपिशाच के चंगुल से बचाने के लिए लोगों को अपनी बेटियों व बहुओं के शरीर पर गुदवाने शुरू कर दिए, बाद में यह देहकला विस्तृत होती चली गयी। जबकि सलमान द्वीप में लड़कियों का विवाह तक तक नहीं हो पाता था जब तक कि उनके चेहरों और वक्षस्थलों पर गोदना न गुदवा दिए जाएं। वहीं ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों में विवाह से पहले लड़कियों की पीठ पर क्षतचिन्हों का होना अनिवार्य माना जाता था। इस बारे में डा. शिव कुमार तिवारी ने अपने पुस्तक मध्यप्रदेश की जनजातीय संस्कृति-मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल संस्करण 1999’ में बताया है कि बैगा जनजाति संसार में सबसे अधिक गोदना के लिए मशहूर है। बैगा स्त्रियां गोदना को स्वर्गिक अलंकरण मानती है। वहीं झारखंड के पलामू जिले की एक वयोवृद्ध आदिवासी महिला सुनैना देवी का कहना है कि सौभाग्यवती महिला को गोदना रूपी आभूषण ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार समाज में न जाने गोदना गुदवाने के कितने मिथक विद्यमान है।
                ऐसा माना जाता है कि गोदना का अपना एक सामाजिक और धार्मिक महत्व होता है। गोदना गोदने वाली महिला को बदनिन कहा जाता है। ये बदनिन जिस्मों पर मनचाही आकृति नाम और चिन्ह गोदती है। कहा जाता है कि गोदना बरसात के महीने में नहीं गुदवाया जाता है बाकि किसी भी मौसम में गोदना गुदवा सकता है। बैगा युवतियां गोदना गुदवाने के लिए बीजा वृक्ष के रस या रमतिला के काजल में 10-12 सुईयों के समूह को डुबाकर शरीर की चमड़ी में चुभोकर गुदवाती है। खून बहने पर रमतिला का तेल लगा दिया जाता हैै। इसके बाद उसमें राख, कोयले का चूर्ण व कई प्रकार के प्राकृतिक रंग भरे जाते हैं जिससे वह आकृति शरीर में स्थायी रूप से रह जाती है। गोदना में सूई के माध्यम से शरीर में छेदकर आकृतियां बनाई जाती है और इस दौरान असहनीय दर्द होता है। गोदना/टैटू गुदवाने के समय जबरदस्त दर्द का एहसास होता है जिसमें मौत तक हो जाती है। दरभंगाा के अचलपुर निवासी रितेश यादव की पत्नी विभा देवी बताती है कि ‘‘करीब चार साल पहले मुझे गोदना गुदवाने पर मजबूर किया गया। मैं गोदना गुदवाने के समय होने वाले दर्द से भयभीत थी लेकिन परिवारवालों ने यह कहकर मजबूर किया कि कि जब तक तुम्हारे शरीर पर गोदना नहीं होगा, तब तक तुम्हारी शादी नहीं हो सकती।’’
                                गोदना गुदवाने से कई प्रकार के खतरे भी हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शरीर विज्ञान विभाग द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन में यह पता चला कि टैटू/गोदना के कारण त्वचा और हड्डी के कैंसर की संभावना बढ़ती है। इससे कई चर्म रोग पैदा होते हैं। सूई द्वारा शरीर पर किया जाने वाला टैटू यानि गोदना कुष्ठ रोग के फैलाव का प्रमुख कारण हो सकता है।
                दरभंगा, बिहार की निवासी वाणिज्य की छात्रा तन्नू गुप्ता का कहना है कि उसके माता-पिता ने हाथ पर गोदना यह कहकर गुदवाने पर मजबूर किया कि ऐसा करने से शुभ होता है। मतलब साफ है कि संस्कृति एवं धार्मिक भावनाओं के नाम पर बिना मर्जी के गोदना गुदवाने की परंपरा अभी भी जारी है। जबकि हकीकत यही है कि ये सारी चीजें अंधविश्वास के बुनियाद पर टिका है जिसे खत्म करना आवश्यक है। यही वजह है कि गोदना गुदवाने की परंपरा अब कमजोर हो चला है और अब यह एक फैशन के रूप में स्थापित होता जा रहा है। परिणामस्वरुप जो कला स्त्रियों तक सीमित था, वह अब पुरुषों तक जा पहुंचा है और आज के युवा टैटू के दीवाने नजर आते हैं। कुछ समय पहले ही काठमांडू में एक नवयुवक ने अपने दोस्त के बीवी का चित्र अपने छाती पर टैटू को उकेर लिया था। यथार्थ, प्यार से अभिभूत युवक व युवतियां अपने प्यार को दर्शाने के लिए टैटू का सहारा लेते हैं। ऐसे में उन्हें दर्द का एहसास हो, सवाल ही नहीं उठता। और ऐसे समय में उनके जुबान पर एक ही डायलाग होता है- ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’’

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