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Bharat ke samajik-aarthik-bhaugolik-rajnitik dhanche me smart shaharon ki upadayeta

भारत के सामाजिक-आर्थिक-भौगोलिक- राजनीतिक ढ़ांचे में स्मार्ट शहरों की उपादेयता
निर्भय कुमार कर्ण
चूंकि स्मार्ट शहरों की कोई व्यापक या सर्वमान्य परिभाषा नहीं है लेकिन मोटी तौर पर इसे परिभाषित किया जाए तो स्मार्ट शहर वे शहर हैं जहां यातायात सुलझा हुआ हो, सड़कें और इमारतें योजनाबद्ध तरीके से बनी हुयी हों, बिजली, पानी, इंटरनेट जैसी सुविधाओं का अबाध्य आपूर्ति हो साथ ही प्रत्येक परिवार का अपना मकान हो, रोजगारपरक एवं अन्य सुविधा हो। कुल मिलाकर एक ऐसा शहर जहां लोगों की जीवनशैली किसी प्रकार से बाधित न हो और सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक सहित राजनीतिक ताकतों से सही दिशा से भरपूर व सुदृढ़ हो, वही स्मार्ट शहर कहलाता है। 
भारत में 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी का स्मार्ट सिटीकी बातें करना लोगों को खासकर शहरी लोगों को काफी रास आया था और उसी को ध्यान में रखते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने वादों को पूरा करने के लिए 100 स्मार्ट शहरों की विकास योजना का खाका तैयार करते हुए केंद्रीय बजट में 7,060 करोड़ रूपए का आवंटन किया है। वहीं नरेंद्र मोदी का अमेरिकी दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने घोषणा की कि इलाहाबाद, अजमेर और विशाखापत्तनम में तीन स्मार्ट शहरों के विकास में अमेरिका, भारत की मदद करेगा। इसके साथ ही अमेरिका भारत के 500 शहरों में नागरिक समाज और स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर स्वच्छ पेयजल और जल-मल निकासी सुविधा प्रदान करने के लिए काम करेगा। वैसे भारत सरकार की नजर में स्मार्ट शहर वह शहर होगा जहां 24 घंटे बिजली-पानी की उपलब्धता हो, परिवहन व्यवस्था इस कदर दुरूस्त हो कि हर घर से अधिकतम 800 मीटर की दूरी पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध हो, इन शहरों में स्मार्ट हेल्थकेयर सेवाओं और सरकारी कार्यों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम उपलब्ध हो, सीवेज-कूड़ा निस्तारण प्रणाली का उत्तम इंतजाम हो, जन प्रबंधन के लिए ज्यादा से ज्यादा तकनीक का प्रयोग हो आदि-आदि। यदि उपरोक्त चीजें किसी शहर को उपलब्ध करा दिया जाए तो वह शहर विकास की पटरी पर तेजी से दौड़ने लगेगा जिससे स्मार्ट सिटी शहरीकरण को और तेजी से बढ़ावा भी देगा। जबकि शहरीकरण आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। देश की एक-तिहाई आबादी की देश के सकल घरेलू उत्पाद में दो-तिहाई हिस्सेदारी है और सरकारी राजस्व का 90 फीसदी भाग यहीं से हासिल होता है। इसलिए हमें भारत के सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक ढ़ांचे में स्मार्ट शहरों की उपादेयता को बखूबी समझने की आवश्यकता है और उसी मद्देनजर स्मार्ट शहरों की कमजोरी की खामियों को भी दूर करते हुए इस योजना को कार्यान्वित करने पर जोर देना होगा। वहीं एक स्मार्ट शहर के लिए अधिक से अधिक निवेश, बुनियादी ढ़ांचे पर अधिकाधिक खर्च, महानगरीय योजना बनाने वाली समितियों का दक्ष होना जरूरी होता है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि स्मार्ट शहर शहरी जीवनशैली को पूरी तरह बदलने में सक्षम और इस पथ पर शहर अग्रसर भी है।
हमारा सारा सामाजिक ढांचा मानवीय मूल्यों पर आधारित होता है। जबकि समाज शहर और गांव दोनों जगहों पर मौजूद होता है। भारत का सामाजिक ढ़ांचा परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है जो प्रत्येक सदस्य व समाज को परस्पर जोड़कर रखती है। समाज में नैतिकता, परस्पर सौहार्दयता, भाईचारा आदि की भावना कूट-कूट कर भरी होती है। यह हम नहीं कह सकते हैं कि शहरों में उपरोक्त सामाजिक गुण व भावनाएं विद्यमान नहीं है लेकिन यह इतना कम है कि इसे सकारात्मक पहलू में नहीं देखा जा सकता। आधुनिकीकरण व पश्चिमी देशों की सभ्यता हवा की तरह बहती हुयी हमारे वातावरण में इस तरह तेजी से घुलती जा रही है कि शहर का सामाजिक तंत्र बिल्कुल ही असंतुलित हो गया है जिसका व्यापक असर ग्रामीण क्षेत्रों पर भी पड़ने लगा है।
यह विदित है कि सामाजिक ढ़ांचे की शुरुआत शादीनामक संस्था से ही शुरू होती है और यह ढ़ांचा अधिक कोमल व नाजुक होता है जो काफी हद तक आपसी सामंजस्य और आत्मसंयम पर टिका होता है। स्मार्ट शहरों में लोगों के आगे बढ़ने की होड़ में उपरोक्त सामाजिक तत्वों की कमी के होने की वजह से मानवीय संवेदनाओं की कमी होती है। इस कारण न केवल रिश्ते कमजोर हुए हैं बल्कि ईर्ष्या और वैमनस्यता को भी बढ़ावा मिला है। अब इंसानियत की जगह प्रायः ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, वैमनस्यता ने जगह ले ली है जहां प्यार/दुलार दिखावे भर के लिए रह गया है। वत्र्तमान परिवेश ने संयुक्त परिवार को तितर-बितर कर एकल परिवार में तब्दील करने में तेजी से जुटा है। परिवार पर हम दो-हमारे दोकथन हावी होने लगा है और कुल चार लोग यानि मां-बाप और उनके बच्चे एक छत के नीचे रहना चाहते हैं जिसमें दूसरे की दखलअंदाजी उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं होती। और ये बातें सबसे ज्यादा शहरों में देखने को मिलता है। कुल मिलाकर सामाजिक ढ़ांचे में धीमी गति से बदलाव आ रहा है। यह देखा गया है कि आर्थिक अवसरों के बढ़ने से कई बार परंपरागत ढांचे में दरार बढ़ती है। इसलिए सामाजिक संदर्भ में सामजिक ढ़ांचा का और कमजोर हो जाने की आशंका ज्यादा है जिसके मद्देनजर स्मार्ट शहरों की उपादेयता का कोई खास ज्यादा महत्व नहीं रह जाता।
यह माना जाता है कि अधिकतर शहर आर्थिक रूप से सुदृढ़ होता है जो उद्योगों, व्यापार, पर्यटन आदि को बढ़ावा देते हुए रोजगार का सृजन करती है। देश में 10 ऐसे बड़े शहर है, जहां देश की आठ फीसदी आबादी रहती है। इन शहरों में देश का 15 फीसदी उत्पादन होता है। स्मार्ट सिटी होने की वजह से न केवल शहरों की उत्पादकता बढ़ती है, रोजगार का सृजन होता है बल्कि पर्यटन की वजह से भी आर्थिक रूप से शहर सुदृढ़ होता है। यही कारण है कि शहरों को स्मार्ट बनाते हुए पर्यटन को पुरजोर बढ़ावा दिया जा रहा है। इसका आलम यह है कि पिछले कुछ सालों में विदेश जाने वाले भारतीयों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है। भारतीय पर्यटन मंत्रालय की मानें तो भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों के मुकाबले विदेश जाने वाले पर्यटकों की संख्या दुगुनी हुयी है। जहां 2010 में भारत में 5.78 मिलियन विदेशी पर्यटक आए थे जो 2013 में बढ़कर 6.97 मिलियन हो गया वहीं विदेशों में भ्रमण करने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या 2010 मे 12.99 मिलियन था जो 2013 में बढ़कर 16.63 मिलियन तक पहुंच गया। वहीं भारत में एक-दूसरे जगहों पर पर्यटक के तौर पर घूमने वालों की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है। जहां यह संख्या 2010 में 740 मिलियन थी जो 2013 में बढ़कर 1145 मिलियन तक पहुंच गयी। मतलब साफ है कि दुनियाभर में पर्यटन उद्योग का भविष्य उज्जवल है। इसलिए विश्व के प्रमुख विरासत/पर्यटक स्थलों को संबंधित देश सजाने-संवारने को प्राथमिकता देता है जिससे कि अधिक से अधिक पर्यटक उनके देशों का दौरा कर सके और उस देश की आमदनी बढ़ सके। यूरोपीय देश, तटीय अफ्रीकी देश, पूर्वी एशियाई देश, कनाडा, स्विट्जरलैंड आदि ऐसे देश हैं जहां पर पर्यटन उद्योग से प्राप्त आय वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है। ऐसे में आर्थिक ढ़ांचे में स्मार्ट शहरों की उपादेयता और भी अधिक बढ़ जाती है।
दूसरी ओर, स्मार्ट शहर का अमीरी-गरीबी की खाई को और अधिक चौड़ी करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। देखा जाए तो अमीर तेजी से अमीर हो रहे हैं और गरीब उसी हिसाब से पीछे होता जा रहा है। शहर आगे बढ़ रहे हैं जबकि गांव पीछे छूटता जा रहा है। नेशनल सैंपल सर्वे आॅफिस की पारिवारिक उपभोक्ता व्यय 2011-12 रिपोर्ट समाज में व्याप्त असमानताओं का खुलासा करती है। इसके मुताबिक, 1993 में राष्ट्रीय स्तर पर गांव और शहर में एक व्यक्ति के मासिक व्यय में अंतर 65 प्रतिशत था जो 2011-12 में बढ़कर 86 प्रतिशत हो गया है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों के दौरान भारत की शहरी आबादी 21 करोड़ 70 लाख से बढ़कर 37 करोड़ 70 लाख हो चुकी है और 2031 तक 60 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। इस प्रकार भौगोलिक दृश्टिकोण से शहरी क्षेत्रों पर ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा आबादी का अधिक दबाव है। किसी शहर का स्मार्ट होने से आबादी का दबाव और अधिक होता है क्योंकि लोग शहरों की चकाचौंध और विकास से अछूता नहीं रह पाता और शहरों की ओर अपने सपने को उड़ान देने के लिए कूच कर जाता है। इस वजह से शहर और गांव के परिप्रेक्ष्य में जनसंख्या के घनत्व में काफी अंतर पाया जाता है। 1950 से 1990 के बीच शहरों का विकास गांवों की तुलना में दोगुनी से ज्यादा गति से हुआ वहीं 1990 से 2000 के दशक में तो विश्व की शहरी आबादी में कोई 83 प्रतिशत वृद्धि हुयी। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 21वीं सदी का विश्व शहरी विश्व होगा।
स्मार्ट शहर का उद्देश्य यह भी है कि पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाये वह प्रगति करे जिसके लिए साफ-सफाई का उत्तम इंतजाम हो। साफ-सफाई के बाद बचे अवशेष यानि की कूड़े का निस्तारण इस प्रकार हो कि शहर की भौगोलिक दशा को कोई नुकसान न पहुंच सके। देशभर में कचरे का यह आलम है कि नेशनल एनवाॅयरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट, नागपुर के मुताबिक, देश में हर साल 44 लाख टन खतरनाक कचरा निकल रहा है। हमारे देश में औसतन प्रति व्यक्ति 20 से 60 ग्राम कचरा हर दिन पैदा करता है। भारत में दिल्ली जैसे विकसित शहर में भी कचरे को निस्तारण करने की समस्या इस कदर है कि दिल्ली नगर निगम कई-कई सौ किलोमीटर दूर दूसरे राज्यों में कचरे का डंपिंग ग्राउंड तलाश रहा है। इतने कचरे को एकत्र करना, फिर उसे दूर तक ढ़ोकर ले जाना महंगा और जटिल काम है। यह सरकार भी मानती है कि देश के कुल कूड़े का महज पांच प्रतिशत का ईमानदारी से निपटान हो पाता है। ऐसे में स्मार्ट सिटी के सपने को पूरा करने की चुनौतियां कम नहीं है।
भारत के स्मार्ट सिटी के सपना को पूरा करना कोई आसान काम नहीं होगा क्योंकि हमारे यहां ज्यादातर पुराने शहर अनियोजित हैं। शहर की एक बड़ी आबादी सड़कों और झुग्गी-झोपडि़यों में रहती है। इसलिए हमारे यहां सभी चीजों के लिए मौलिक ढ़ांचा तैयार हो जाए, तो ही शहर स्मार्टसंभव होने के दायरे में आ जाएगा और तभी हम सुरक्षित व पर्यावरण के लिहाज से टिकाऊ, स्थायी, कुशल, न्यायसंगत शहर, रोजगार पैदा करने वाले शहर, रचनात्मकता को बढ़ावा देने वाले शहर बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
स्मार्ट सिटीशब्द सुनने में काफी अच्छा लगता है जो जनता के दिलों-दिमाग पर एक क्षण के लिए जादू का काम करता है। यही सपना लोक सभा चुनावी सभाओं के दौरान भारतीय जनता को दिखाया गया और स्मार्ट सिटी का मुद्दा राजनीतिक गलियारों के लिए फायदेमंद भी रहा। यदि वास्तव में स्मार्ट सिटी योजना का कार्यान्वयन हो जाता है तो किसी शहर का स्मार्ट होने का फायदा सबसे ज्यादा राजनीतिक दल को ही होगा। कुछ पक्ष में तो कुछ विपक्ष में अपने तर्कों-कुतर्काें से एक-दूसरे पर फब्तियां कसते नजर आएंगे और इसी बहाने सत्ताधारी दल अन्य चुनावों में इसका फायदा उठाने से पीछे नहीं रहेंगे लेकिन हकीकत यही है कि स्मार्ट सिटी ही राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र होगा। क्योंकि सारी सुविधाओं से लैस स्मार्ट शहर से पूरे देश में अपनी राजनीति चमकाना आसान होता है जिसका अंदाजा हाल में हुए  लोकसभा चुनाव से लगाया जा सकता है।
कुल मिलाकर अनस्मार्ट शहर को स्मार्ट शहर बनाने के लिए प्रत्येक स्तर पर चुनौतियां है जिसमें कुछ ऐसी भी चुनौतियां है जिससे पार पाना आसान नहीं होगा। वर्तमान हालत यही है कि मौजूदा शहरी संस्थागत ढ़ांचा अभी भी कई मोर्चे पर कमजोर है चाहे वह सामाजिक स्तर पर हो या फिर भौगोलिक स्तर पर। इन सभी में राजनीतिक रूप से यह भी ढ़ांचा कमजोर है जिसे दूर करने की आवश्यकता है। कहीं न कहीं शहर आर्थिक रूप से सुदृढ़ है लेकिन स्मार्ट शहर के लिए और भी मेहनत करने की आवश्यकता है। हमें ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जो टिकाऊ हो और विकास की ओर ले जाती हो।


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