UPBHOKTA ADHIKAR DIWAS KI YATHARTTA (On World consumer right day- 15 March) - सुस्वागतम्
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UPBHOKTA ADHIKAR DIWAS KI YATHARTTA (On World consumer right day- 15 March)



(15 मार्च- विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस)
मोबाइल में सिमटती दुनिया
 / उपभोक्ता अधिकार दिवस की यथार्थता

निर्भय कर्ण


गत् वर्ष इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन (आईटीयू) की जारी रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2013 तक मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या दुनिया की आबादी के बराबर हो जाएगी। यानि कि इस दुनिया में चाहे बच्चे हों या बड़े या फिर बूढ़े सभी के हाथों में उनका अपना मोबाइल अब तक हो चुका है। नवजात बच्चे तो अपना मोबाइन नहीं रख सकते इसलिए उनकी संख्या का मोबाइल युवा-बड़े ही उपयोग करते हैं। देखा जाए तो युवा ही सर्वाधिक मोबाइल इस्तेमाल करते हैं, ऐसे में मोबाइल से होने वाले नुकसान भी युवाओं को ही सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है। इन सबके बीच सवाल यह कि क्या दुनिया अपने उपभोक्ता अधिकार को जानती है? क्या मोबाइल बेचने वाली कंपनियां उपभोक्ता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए उत्पाद का उत्पादन करती है जिससे उपभोक्ता अधिकार दिवस की यथार्थता बरकरार रह सके?



आईटीयू रिपोर्ट के मुताबिक, आबादी में प्रथम स्थान रखने वाला चीन मोबाइल का उपभोग करने में भी प्रथम स्थान पर है वहीं भारत दूसरे स्थान पर। मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि को ध्यान में रखते हुए कंज्यूमर्स इंटरनेशनल ने 2014 के उपभोक्ता अधिकार दिवस के थीम का नाम दिया हैफिक्स आवर फोन राइट्स मतलब यह कि मोबाइल/फोन के अधिकारों के बारे में लोगों को जागरूक करना और कंपनियों को उपभोक्ताओं के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए इन उत्पादों के निर्माण हेतु प्रेरित। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के मार्गदर्शन में उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए 1983 में 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित हुआ था और तभी से प्रत्येक वर्ष 15 मार्च को विश्व  उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया जाता है लेकिन ढ़ाई दशक बीत जाने के बाद भी देश में 93 फीसदी उपभोक्ता अपनी शिकायत उपभोक्ता फोरम में दर्ज नहीं कराते। देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता है चाहे उनकी आमदनी और सामाजिक स्थिति कोई भी हो। चूंकि प्रत्येक उपभोक्ता को उत्पाद के बारे में सुरक्षा पाने, चुनने उसके बारे में सुने जाने का अधिकार होता है। इसके बावजूद हर उपभोक्ता अपनी जिंदगी में उत्पाद को लेकर कम से कम एक बार तो अवश्य ही ठगा जाता है और जाने कब तक ठगे जाते रहेंगे।



मोबाइल के प्रति लोगों की दीवानगी आश्चर्यजनक है जिसमें बड़े-बूढ़े क्या बच्चे तक शामिल हैं। सभी अपने-अपने दिलचस्पी के अनुसार मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं। लोगों का मोबाइल के प्रति अति आकांक्षा का मुख्य कारण इंटनेट है। इंटरनेट सर्फिंग, चैटिंग और गेम खेलने के शौकीन लोग मोबाइल से अपनी नजर हटा ही नहीं पाते। जहां देखो, जिसे देखो सब मोबाइल में खोये रहते हैं। मोबाइल में तमाम सुविधा ने लोगों को अपने आप में खो जाने पर विवश कर दिया है जिससे छुटकारा पाना मुश्किल होता जा रहा है। पिछले 25 साल में इंटरनेट ने पूरी दुनिया को एक-दूसरे के इतना निकट ला दिया है कि इससे दूरी बना पाना आसान नहीं। इससे सुविधाएं तो मिली है लेकिन उससे कहीं ज्यादा समस्याएं भी पैदा हुई है। कुछ समय पहले कहा जा रहा था कि भारत में बहुत ज्यादा लोगों के पास कंप्यूटर नहीं है, बिजली हर जगह पहुंचती नहीं है इसलिए इंटरनेट एक खास वर्ग तक ही पहुंच पाएगा। लेकिन इंटरनेट मोबाइल फोन के जरिए पहले से कहीं ज्यादा लोगों तक पहुंच रहा है। 08 में से 07 लोग इंटरनेट का उपयोग मोबाइल के जरिए ही करते हैं। मोबाइल फोन के प्रति लोगों की दीवानगी का आलम यह है कि 80 फीसदी लोग तकिए के नीचे फोन रखकर सोते हैं।



ऐसे में मोबाइल का स्वास्थ्य पर असर पड़ना भी लाजिमी है। मोबाइल की लत से अनिद्रा, मस्तिष्क, आंख, कान, हृदय एवं अन्य शरीर के अंगों पर खतरनाक असर पड़ता है। मोबाइल से निकलने वाली रोशनी रेटिना में मौजूद प्रकाश संवेदी कोशिकाओं को सक्रिय रखती है। सोने में दिक्कत होने के साथ-साथ आंखे कमजोर पड़ने और सिरदर्द-चक्कर की समस्या बढ़ने का खतरा बना रहता है। कम गुणवत्ता वाले मोबाइल से ये समस्याएं और भी भयंकर हो जाता है। बैटरी में विस्फोट होने से अबतक कईयों की जानें तक जा चुकी है। ऐसे में मोबाइल खरीदते समय उत्पाद की गुणवत्ता को जरूर ध्यान में रखना चाहिए। इसके साथ ही कंपनियों का कत्र्तव्य बनता है कि स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उत्पाद का निर्माण करे जिससे उपभोक्ता अधिकार का हनन हो पाए। वहीं इंटरनेट के जरिए ठगी की खबरें आए दिन मिलती रहती है। दुनिया अब एक-दूसरे से जुड़ चुकी है, इसलिए एक देश में बैठा कोई ठग दूसरे देश के किसी नागरिक को कभी भी ठग सकता है। ऐसे ठग को पकड़ पाना बहुत ही मुश्किल है।



पैसों की असली अहमियत क्या होती है, यह मेहनतकश लोग सही-सही व्याख्या कर पाते हैं जो दिन-रात मजदूरी करके अपने परिवार का पेट भरता है। वह कोई भी उत्पाद खरीदते समय काफी पुछताछ करता है चाहे वह उत्पाद नमक ही क्यों हो? लेकिन अन्य वर्गों के द्वारा खरीदने की बात जब आती है तो वह ऊंची कीमत के उत्पाद को सर्वोत्तम मानकर नाममात्र पूछताछ के बाद क्रय करता है। मोबाइल/फोन खरीदने के समय मेहनतकश लोग स्वास्थ्य का बिना परवाह किए धड़ल्ले से खरीदता है वहीं अन्य वर्ग इस मामले में काफी सजग रहता है और हर चीज की बारीकी से जांचता है। इसका सीधा-साधा उदाहरण है चाइनीज मोबाइल की बिक्री में जबर्दस्त इजाफा। यह चर्चित है कि चाइनीज मोबाइल स्वास्थय को दरकिनार करते हुए कम कीमत में अधिक से अधिक फीचर उपलब्ध कराता है। कहने का यथार्थ यह कि अधिकतर कंपनियां उपभोक्ता के अधिकारों को ताक पर रखकर उत्पाद का निर्माण करती है चाहे उत्पाद कोई भी हो। अफसोस की बात यह है कि अंधाधुंध मुनाफा कमाने की चाह में व्यापारी एवं निर्माता आमजन की संवेदनाओं और पैसे की परवाह नहीं करते। यही नहीं वे उपभोक्ताओं की जान से खेलने तक से नहीं हिचकते। वहीं अधिकतर उपभोक्ता को अपने अधिकार की जानकारी ही नहीं होती जिनमें उच्च शिक्षित लोग भी शुमार हैं। इसलिए जरूरत है उपभोक्ता को अपने अधिकरों के प्रति सचेत होने की।



उपभोक्ताओं की समस्याओं का आलम यह है कि उत्पाद को लेकर उन्हें तो उगलते बनता है और ही निगलते। बाजार में जो उत्पाद उपलब्ध है, उन्हीं को खरीदना लोगों के लिए मजबूरी बन गया है लेकिन हमें इतना मजबूर भी होने की जरूरत नहीं है और अपने आप को बाजार के हवाले कर देने की। मौजूदा दौर में बाजार में उत्पाद की पर्याप्त उपलब्धता लोगों को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में कोई एक चुनने का अवसर प्रदान करती है। हमें घटिया गुणवत्ता वाली उत्पादों का बहिष्कार कर कंपनियों को अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए विवश करना होगा। इसके अलावा, किसी उत्पाद की गुणवत्ता में पाए जाने पर हम सीधे उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकते हैं। जहां पर इन शिकायतों का निपटारा होता है और उचित न्याय मिलने की संभावना रहती है।



जागरूक उपभोक्ता केवल शोषण से अपनी सुरक्षा करता है बल्कि समूचे निर्माण और सेवा क्षेत्र में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रेरित करता है। उपभोक्ताओं की जागरूकता के स्तर को किसी देश की प्रगति का सूचक माना जा सकता है परंतु यह जागरूकता तभी सार्थक होगी जब उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार के साथ-साथ आम नागरिक भी सक्रिय भूमिका निभाए।
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