Jiwan ko Sankuchit Karti tanavgrast evam jatil jiwanshaili (on the occasion of World Health Day (7th April) - सुस्वागतम्
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Jiwan ko Sankuchit Karti tanavgrast evam jatil jiwanshaili (on the occasion of World Health Day (7th April)

(7 अप्रैल- विश्व स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष्य में)
जीवन को संकुचित करती तनावग्रस्त जटिल जीवनशैली



दुनिया में स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ भी नहीं होता और शरीर अगर स्वस्थ हो तो सब कुछ अच्छा लगता है, दिल को सुकून मिलता है लेकिन अगर हम थोड़ा भी बीमार पड़ते हैं तो सारी दुनिया अधूरी सी लगने लगती है। इसलिए स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन भी कहा गया है लेकिन वर्तमान परिवेश और हमारी जीवन-शैली ने लोगों को अस्वस्थ होने पर मजबूर कर दिया है। क्या इस अस्वस्थता के लिए हमारे द्वारा निर्मित दूषित परिवेश और जीवन-शैली सर्वाधिक जिम्मेदार नहीं है?
हम अपने परिवेश को इतना दूषित करते जा रहे हैं कि जीना दूभर होता जा रहा है और नयी-नयी बीमारियों का जन्म हो रहा है जिससे रोगियों की संख्या में साल-दर-साल बेतहाशा वृद्धि हो रही है। ऐसा कोई तत्व बाकी नहीं रहा जो प्रदूषित होने से बचा हो चाहे वायु, जल, भूमि, प्रदूषण हो या फिर अन्य। प्रदूषण एक ऐसा कारक है जो सबसे ज्यादा लोगों को बीमार कर रहा है और लगभग सभी बीमारियों में कारक के रूप में इसके वर्चस्व को इंकार नहीं किया जा सकता। अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा किए गए विश्लेषण  के अनुसार, 21 लाख लोग दुनियाभर में हर साल प्रदुषण की वजह से मृत्यु की गोद में समा जाते हैं। प्रदूषण  का स्तर इस कदर बढ़ गया है कि संयुक्त राष्ट्र के इन्टर गर्वन्मेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट में दावा किया गया कि खतरा तो बढ़ चुका है लेकिन स्थिति अभी नियंत्रण से बाहर नहीं है। खतरा कम करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले 95 फीसदी वैज्ञानिक इस बात से सहमत थे कि जलवायु परिवर्तन के लिए हमारी गतिविधियां ही जिम्मेदार है।

वहीं हमारी जीवन शैली आधुनिकता की हवा में इस तरह बह चली है कि इस पर सवाल खड़े होने लगे हैं। आधुनिकता ने विलासिता को इस कदर बढ़ावा दे दिया है कि यह केवल अपने चंगुल में लोगों की जीवन शैली को लपेट लिया है बल्कि समूचे जीवन को संकुचित सा कर दिया है। हमारा शरीर अब पंखे, कूलर, एसी के बिना नहीं रह सकता। बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि एसी और रेडिएशन युक्त अन्य उपकरणों से घरों में आक्सीजन का स्तर कम होता है जिसका कारण है सांस संबंधी बीमारियो का बोलबाला। घर में फ्रिज एवं सुविधाजनक वस्तुओं की पहुंच ने लोगों को इतना सुकुमार बना दिया है कि अब इन असुरक्षित चीजों के बगैर जिंदगी जीना ही असंभव होता जा रहा है। इसके होने से ही लोग अपने आप को असहज महसूस करने लगते हैं। 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और चंडीगढ पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसन विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया कि शहरी क्षेत्रों में पैसिव स्मोकिंग, इलेक्ट्रानिक रेडिएशन उपकरणों के साथ ही घरों में हवा का निकास या प्रवेश होने के कारण सांस संबंधी संक्रमण बढ़ा वहीं गांवों में बायोफ्यूल (जैसे कि स्टोव, चूल्हा) को इसकी प्रमुख वजह माना गया। इसके अनुसार, 35 प्रतिशत लोगों की मौत की वजह असंक्रामक बीमारी (एनसीडी) थी। एचएपी (हाउस होल्ड एअर पाल्यूशन) को स्वास्थ्य के लिए घातक 67 प्रमुख कारकों में एक माना गया।

दूसरी ओर घृणा, द्वेष, ईर्ष्या, लालच ने लोगों को अपने चंगुल में लेकर इतना तनाव पैदा कर दिया है कि लोगों की आंतरिक शांति विलुप्त हो गयी है। दिखावे के तौर पर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट तो जरूर नजर जाती है लेकिन अंदर ही अंदर वह बड़े ही अशांत रहते हैं और कुढ़ते रहते हैं। एक-दूसरे को पछाड़ने की प्रतिस्पर्धा ने लोगों के सुख-चैन को छीन लिया है जिसके कारण लोग अधिक बीमार पड़ रहे हैं। प्रतिस्पर्धा के दौर में बदली जीवनशैली  लोगों में तनाव स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का कारण बन गई है। इसका असर काफी व्यापक है। युवा वर्ग भी तेजी से हाइपरटेंशन, मोटापा, अनिद्रा, शूगर आदि बीमारियों के चपेट में रहा है। आंकड़ों के नजरिए से देखें तो भारत में 1960 में हाइपरटेंशन 5 प्रतिशत, 1950 में 12  और 2008 में 30 प्रतिशत तक बढ़ा और अनुमान है कि 2030 तक भारत में इनकी संख्या 21.5 करोड़ को पार कर जाएगी। अनियमित दिनचर्या और भागदौड़ भरी जिंदगी कामकाजी युवाओं की सेहत पर भारी साबित हो रही है। देर-रात सोना और सुबह देर से उठने की लत ने हमारी पूरी जीवन शैली को ही प्रभावित कर दिया है।

आज ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गयी है जिनमें जटिल और तनावग्रस्त जीवनशैली से जूझता हुआ व्यक्ति तो अपने खान-पान पर ध्यान देता है और ही अपने स्वास्थ्य की अहमियत को समझता है। दुनिया में ऐसा कोई परिवार नहीं होगा जिसके घर में लोग बीमार हों। रोगियों की संख्या में इजाफे की बात करें तो प्रतिवर्श इसमें काफी बढ़ोतरी हो रही है और उसी अनुपात में परिवार के इलाज पर खर्च की सीमाएं भी सारे रिकार्ड ध्वस्त करती जा रही है। भारत में हर साल लगभग 4 करोड़ लोग बीमारी के कारण गरीबी की दोहरी मार झेलते हैं। परिवारों को अपनों की बीमारी का इलाज कराने के लिए अपने खेत-खलिहान, मकान, गहना-जेवर तक बेचना पड़ जाता है। लोगों की जीवन प्रत्याशा दर की बात करें तो वर्तमान में भारत में औसत जीवन प्रत्याशा दर 68.6 वर्ष है जबकि सर्वोच्च औसत जीवन प्रत्याशा दर (83 वर्ष) वाले देश जापान, स्विट्जरलैंड, सैन मैरिनों है वहीं सबसे कम (47 वर्ष) सिएरा लियोन का है।

यह बिल्कुल ही सत्य है कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। जब हम शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं तो हमें मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ अनुभूति होती है और हम सफलतापूर्वक अपने सभी कार्या को पूरा करते हैं। इसलिए यदि हमें स्वस्थ रहना है तो सबसे पहले अपने वातावरण को हर हालत में साफ और स्वच्छ रखें और किसी कीमत पर अपने परिवेश को दूषित होने से रोकें साथ ही अपनी जीवनशैली को बदलें, जितना कम से कम हो सके उतना ही विलासिता की चीजों (एसी, कूलर, एवं अन्य) का उपयोग किया जाए। योग व्यायाम को प्रतिदिन के कार्यों में शामिल करें। एक-दूसरे को पछाड़ने की अनावश्यक प्रतिस्पर्धा से बचें। स्वदेशी क्रिया-कलापों को अपनाएं। अपनी जिंदगी में उन चीजों को शामिल करें जो आपको स्वस्थ रखने में लाभप्रद हो। ऐसा करने से ही विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल) का उद्देश्य सफल हो सकेगा और हम अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत होकर स्वस्थ जिंदगी व्यतीत कर पाएंगे।
           
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