Sapna, Sona aur Such
सपना, सोना और
सच
‘‘चलो यार, डोंडियाखेड़ा
में सोना
मिलने के
बहाने सोने
का दाम
काफी कम
हो जाएगा।
इस बार
की दिवाली
से पहले
धनतेरस के
मौके पर
सोने की
खरीदारी खूब
करेंगे’’, कुछ ऐसी ही बातें
मंजू और
निधि धनतेरस
के मौके
पर खरीदारी
को लेकर
आपस में
कर रही
थी लेकिन
इनका सपना
टांय-टांय
फिस्स हो
गया। क्योंकि
अब तक
न तो
सोना मिला
है और
न ही
मिलने के
आसार नजर
आ रहे
हैं। कई
जगहों पर
लोगों ने
सोने की
भाव में
गिरावट होने
की उम्मीद
में सोने
की खरीदारी
करना बंद
कर दिया
था।
ज्ञात हो कि 18 अक्टूबर, 2013 से उत्तर प्रदेश के डोंडियाखेड़ा में सोने की खोज को लेकर देशभर में हलचल मची हुई है जो खुदाई के पूरी होने तक बनी रहेगी। हालांकि अब तक की खुदाई में मूर्ति का टुकड़ा, बर्तन, चूडि़यों के टुकड़े, टूटी-फूटी ईंटे तो मिली, लेकिन अभी तक सोना का कोई अता-पता नहीं है। शोभन सरकार के दावों के ऊपर सरकारी अमला को खुदाई में लगा देना जहां एक ओर हैरान करती है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार के इस रवैये पर दूरगामी असर होने के भी आसार बन गए हैं। सरकार के इस कदम को लेकर सवाल उठने लगा है कि एक तरफ तो हम मंगल तक पहुंच गए हैं और हर चीज को वैज्ञानिक नजरिए से देखने लगे हैं वहीं दूसरी तरफ एक साधु के कहने पर पूरे सरकारी तंत्र को खुदाई में लगा देना कहां तक बुद्धिमानी है? दूसरा, एक साधु के कहने के बाद से ही ये खुदाई क्यों शुरू हुई, क्या ये अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है? तीसरा सवाल यह कि इस कदम से पूरे संसार में भारत के बारे में क्या छवि बन रही है, क्या हम फिर से नवीनतम दुनिया से पुरातन दुनिया की ओर कूच कर रहे हैं?
ज्ञात हो कि शोभन सरकार नामक एक साधु ने किले में 1000 टन सोना दबा होने का सपना देखा था। वह कानपुर के शिवली स्थित आश्रम में रहते हैं और उनका वास्तविक नाम विरक्ता महाराज है। इनके अनुसार, ये सोना 156 साल पहले रहे एक राजा राव रामबक्श सिंह का था। इनका दावा है कि करीब तीन माह पूर्व राम बख्स सिंह उन्हें सपने में दिखे और उन्होंने बाबा को किले के नीचे सोना दबे होने के बारे में बताया। और शोभन सरकार के इसी दावे के भरोसे सरकार ने वहां पर खुदाई करने का फैसला किया। लेकिन जैसे-जैसे खुदाई का काम बढ़ रहा है वैसे ही अब तक सोना न मिलने से शोभन सरकार और सरकार दोनों पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। अब सरकार कहने लगी है कि शोभन सरकार के पास अगर खजाने और किले का कोई नक्शा है तो वो उनके पास आएं, सरकार उनके पास क्यों जाए, मतलब साफ है कि सोना न मिलने से सरकार अब शोभन सरकार से चिढ़ने लगी है। इस मामले में केंद्रीय संस्कृति मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच सफाई देते हुए कहती है कि ‘हमें कोई सोना नहीं मिला है, हम सोने या खजाने के लिए नहीं बल्कि पुरातत्व महत्व की चीजों के लिए खुदाई कर रहे हैं।’ वहीं बाबा का कहना है कि अभी सब्र रखें वैसे भी मेरे मुताबिक खुदाई नहीं की जा रही है। सोना मिलना या न मिलना दोनों ही सूरत में सरकार की काफी किरकिरी होने जा रही है। यदि खुदाई के दौरान सोना मिल भी जाता है तो देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में ऐसे खजानों को लेकर खुदाई की मांग उठने लगेगी और उठने भी लगी है और यह जरूरी भी नहीं है कि हर खुदाई में खजाना हाथ लगे ही? ऐसे हालत में क्या इसे अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं होगा। इससे साफ पता चलता है कि नवीनतम व आधुनिक दुनिया में जीते हुए भी हम पुरातन दुनिया में जीते रहेंगे। वैसे भी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के उन खुलासों को देखा जाए जिसमें यह कहा गया है कि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) खुदाई के दौरान मिलने वाली चीजों का रिपोर्ट देने में काफी देरी करता है। कैग के मुताबिक, देशभर में ऐसे कई मामले हैं जहां खुदाई पूरी होने के 57 साल बाद भी एएसआई ने रिपोर्ट तैयार नहीं की है। मथुरा, श्रावस्ती और रोपड़ में क्रमशः 1954-55, 1958-59 और 1953-54 में खुदाई की गई लेकिन इन जगहों पर क्या मिला इसकी रिपोर्ट अबतक नहीं दी है। कहने का मतलब यह कि यदि डोंडियाखेड़ा के मामले में भी एएसआई अपने पूर्व रिकार्ड की तरह काम करेगा तो यह कहना बहुत ही मुश्किल होगा कि आम जनता को डोंडियाखेड़ा की खुदाई के दौरान मिली चीजों की जानकारी कब हासिल होगा।
दूसरे पहलू की बात करें यानि की यदि सोना इस खुदाई से नहीं मिलता है तो जनता के सामने सरकार की साख घटेगी, इतना ही नहीं ऊपर से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश को शर्मसार होना होगा। सवाल उठने लगेगें कि विज्ञान के सहारे भारत इतना आगे बढ़ चुका है फिर भी एक साधु के कहने पर खुदाई किया जाने लगा, जिसमें करोड़ों रूपए बर्बाद हुआ। वहीं अबतक की खुदाई और एएसआई की बातों पर यकीन करें तो अब तक न तो कोई सोना मिला है और न मिलने वाला है। एएसआई ने भी एक तरह से सोना न होने की बात स्वीकार करते हुए कहा है कि खुदाई ऐतिहासिक महत्व की चीजों के लिए हो रही है और उसे वहां काफी कुछ मिला भी है। मौजूदा साइट की खुदाई अगले कुछ और दिनों तक चालू रहेगी। मतलब साफ है कि फिलहाल हमें कोई सोने की खान नहीं मिलने जा रहा है। इन बातों से स्पष्ट होता है कि एक तरफ तो हमारा देश आधुनिक वैज्ञानिक मूल्यों को बढ़ावा देने की बात करता है तो वही दूसरी तरफ इस तरह के अवैज्ञानिक और अंधविश्वास बढ़ाने वाले उपक्रम में भी शामिल होता है। हमें और आपको यह समझना होगा कि समृद्धि चमत्कारों से नहीं, मेहनत और संघर्ष करने से आती है। यदि सपनों को पूरा करना है तो उसके लिए हमें मेहनत करना होगा और सपने दिखाने वालों से सावधान रहना होगा। कहावत है कि ‘‘ स्वयं को बदल दो भाग्य बदल जायेगा।’’
ज्ञात हो कि 18 अक्टूबर, 2013 से उत्तर प्रदेश के डोंडियाखेड़ा में सोने की खोज को लेकर देशभर में हलचल मची हुई है जो खुदाई के पूरी होने तक बनी रहेगी। हालांकि अब तक की खुदाई में मूर्ति का टुकड़ा, बर्तन, चूडि़यों के टुकड़े, टूटी-फूटी ईंटे तो मिली, लेकिन अभी तक सोना का कोई अता-पता नहीं है। शोभन सरकार के दावों के ऊपर सरकारी अमला को खुदाई में लगा देना जहां एक ओर हैरान करती है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार के इस रवैये पर दूरगामी असर होने के भी आसार बन गए हैं। सरकार के इस कदम को लेकर सवाल उठने लगा है कि एक तरफ तो हम मंगल तक पहुंच गए हैं और हर चीज को वैज्ञानिक नजरिए से देखने लगे हैं वहीं दूसरी तरफ एक साधु के कहने पर पूरे सरकारी तंत्र को खुदाई में लगा देना कहां तक बुद्धिमानी है? दूसरा, एक साधु के कहने के बाद से ही ये खुदाई क्यों शुरू हुई, क्या ये अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है? तीसरा सवाल यह कि इस कदम से पूरे संसार में भारत के बारे में क्या छवि बन रही है, क्या हम फिर से नवीनतम दुनिया से पुरातन दुनिया की ओर कूच कर रहे हैं?
ज्ञात हो कि शोभन सरकार नामक एक साधु ने किले में 1000 टन सोना दबा होने का सपना देखा था। वह कानपुर के शिवली स्थित आश्रम में रहते हैं और उनका वास्तविक नाम विरक्ता महाराज है। इनके अनुसार, ये सोना 156 साल पहले रहे एक राजा राव रामबक्श सिंह का था। इनका दावा है कि करीब तीन माह पूर्व राम बख्स सिंह उन्हें सपने में दिखे और उन्होंने बाबा को किले के नीचे सोना दबे होने के बारे में बताया। और शोभन सरकार के इसी दावे के भरोसे सरकार ने वहां पर खुदाई करने का फैसला किया। लेकिन जैसे-जैसे खुदाई का काम बढ़ रहा है वैसे ही अब तक सोना न मिलने से शोभन सरकार और सरकार दोनों पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। अब सरकार कहने लगी है कि शोभन सरकार के पास अगर खजाने और किले का कोई नक्शा है तो वो उनके पास आएं, सरकार उनके पास क्यों जाए, मतलब साफ है कि सोना न मिलने से सरकार अब शोभन सरकार से चिढ़ने लगी है। इस मामले में केंद्रीय संस्कृति मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच सफाई देते हुए कहती है कि ‘हमें कोई सोना नहीं मिला है, हम सोने या खजाने के लिए नहीं बल्कि पुरातत्व महत्व की चीजों के लिए खुदाई कर रहे हैं।’ वहीं बाबा का कहना है कि अभी सब्र रखें वैसे भी मेरे मुताबिक खुदाई नहीं की जा रही है। सोना मिलना या न मिलना दोनों ही सूरत में सरकार की काफी किरकिरी होने जा रही है। यदि खुदाई के दौरान सोना मिल भी जाता है तो देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में ऐसे खजानों को लेकर खुदाई की मांग उठने लगेगी और उठने भी लगी है और यह जरूरी भी नहीं है कि हर खुदाई में खजाना हाथ लगे ही? ऐसे हालत में क्या इसे अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं होगा। इससे साफ पता चलता है कि नवीनतम व आधुनिक दुनिया में जीते हुए भी हम पुरातन दुनिया में जीते रहेंगे। वैसे भी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के उन खुलासों को देखा जाए जिसमें यह कहा गया है कि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) खुदाई के दौरान मिलने वाली चीजों का रिपोर्ट देने में काफी देरी करता है। कैग के मुताबिक, देशभर में ऐसे कई मामले हैं जहां खुदाई पूरी होने के 57 साल बाद भी एएसआई ने रिपोर्ट तैयार नहीं की है। मथुरा, श्रावस्ती और रोपड़ में क्रमशः 1954-55, 1958-59 और 1953-54 में खुदाई की गई लेकिन इन जगहों पर क्या मिला इसकी रिपोर्ट अबतक नहीं दी है। कहने का मतलब यह कि यदि डोंडियाखेड़ा के मामले में भी एएसआई अपने पूर्व रिकार्ड की तरह काम करेगा तो यह कहना बहुत ही मुश्किल होगा कि आम जनता को डोंडियाखेड़ा की खुदाई के दौरान मिली चीजों की जानकारी कब हासिल होगा।
दूसरे पहलू की बात करें यानि की यदि सोना इस खुदाई से नहीं मिलता है तो जनता के सामने सरकार की साख घटेगी, इतना ही नहीं ऊपर से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश को शर्मसार होना होगा। सवाल उठने लगेगें कि विज्ञान के सहारे भारत इतना आगे बढ़ चुका है फिर भी एक साधु के कहने पर खुदाई किया जाने लगा, जिसमें करोड़ों रूपए बर्बाद हुआ। वहीं अबतक की खुदाई और एएसआई की बातों पर यकीन करें तो अब तक न तो कोई सोना मिला है और न मिलने वाला है। एएसआई ने भी एक तरह से सोना न होने की बात स्वीकार करते हुए कहा है कि खुदाई ऐतिहासिक महत्व की चीजों के लिए हो रही है और उसे वहां काफी कुछ मिला भी है। मौजूदा साइट की खुदाई अगले कुछ और दिनों तक चालू रहेगी। मतलब साफ है कि फिलहाल हमें कोई सोने की खान नहीं मिलने जा रहा है। इन बातों से स्पष्ट होता है कि एक तरफ तो हमारा देश आधुनिक वैज्ञानिक मूल्यों को बढ़ावा देने की बात करता है तो वही दूसरी तरफ इस तरह के अवैज्ञानिक और अंधविश्वास बढ़ाने वाले उपक्रम में भी शामिल होता है। हमें और आपको यह समझना होगा कि समृद्धि चमत्कारों से नहीं, मेहनत और संघर्ष करने से आती है। यदि सपनों को पूरा करना है तो उसके लिए हमें मेहनत करना होगा और सपने दिखाने वालों से सावधान रहना होगा। कहावत है कि ‘‘ स्वयं को बदल दो भाग्य बदल जायेगा।’’
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