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Virasat ke bahane sankirn siyasat

विरासत के बहाने संकीर्ण सियासत

निर्भय कर्ण

प्रधानमंत्री किसी एक व्यक्ति, समाज, समुदाय, दल या राज्य का नहीं होता वरन् वह पूरे राष्ट्र का होता है। लेकिन कांग्रेस ने पंडित जवाहर लाल नेहरू की 125वीं जयंती के अवसर पर होने वाले सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न बुलाकर इस बात का एहसास करा दिया कि प्रधानमंत्री हो या कोई और, वह रजनीतिक द्वेष की वजह से नरेंद्र मोदी को इस सम्मेलन में नहीं बुला सकती। जबकि इस कार्यक्रम में दर्जनों देशों के नेता शामिल हो रहे हैं जिसमें कई नामी-गिरामी शख्सियत के आने की उम्मीद है। साथ ही 11 देशों की राजनीतिक पार्टियों को भी निमंत्रण भेजा गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अपने ही देश के प्रधानमंत्री को जवाहर लाल नेहरू जैसे राष्ट्र नेता की जयंती पर नजरअंदाज करना, राष्ट्र  का अपमान नहीं है तो और क्या है?

                आपको बताते चलें कि नेहरू के जन्मदिवस पर कांग्रेस दिल्ली के विज्ञान भवन में 17-18 नवंबर को  अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने जा रही है। इस बात की पुष्टि कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने करते हुए कहा कि ‘‘यह कांग्रेस का सम्मेलन है। सरकार का इसमें कोई लेना-देना नहीं है।’’ उन्होंने प्रधानमंत्री पर तंज कसते हुए यहां तक कह दिया कि ‘‘पार्टी ने उन्हें कोई न्योता नहीं भेजा है। हमने उन सबको आमंत्रित किया है जो सही मायनों में लोकतंत्र और नेहरू के आदर्शों में यकीन रखते हैं।’’ भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि ‘‘कांग्रेस को समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री देश का होता है, किसी पार्टी का नहीं। प्रधानमंत्री की अवमानना करके वह देश की निरादर कर रही है।’’
    
            दरअसल इसके पीछे कांग्रेस की खीझ स्पष्ट नजर आ रही है। लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव सभी में कांग्रेस की अभूतपूर्व पराजय ही खीझ की असली वजह है तो दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बढ़ते कद से कांगे्रस हैरान-परेशान है। लेकिन कांग्रेस में हताशा भरे माहौल में इस तरह का अनुचित कदम उठाए जाने से उल्टा कांग्रेस को ही नुकसान हो सकता है तो वहीं भाजपा का कांग्रेस की विरासत को अपनाने की कोशिश पूरे विश्व में रंग ला रही है जिसकी चर्चा विश्वभर में जोरों पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छ भारत अभियान का आगाज कर महात्मा गांधी के सपने को साकार करने में जुट गए हैं जिसकी प्रशंसा न केवल पक्ष बल्कि विपक्षी दलों के कई दिग्गज नेताओं ने भी किया। मतलब साफ है कि नरेंद्र मोदी विरासत की सियासत से ऊपर उठकर काम कर रहे हैं। मोदी राष्ट्र प्रतीकों को एक-एक कर अपना कर न केवल राष्ट्र नेता को सम्मान दे रहे हैं वरन् उनके नाम पर देश में विकास की गति को भी तेजी दे रहे हैं। 

                इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए सपा, बसपा, वामदल, जदयू सहित कई पार्टियों को निमंत्रण भेजा गया लेकिन भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगियों को न्यौता नहीं दिया गया। ऐसे में यह तय है कि कांग्रेस आपसी झगड़ा खासकर राजनीति में अपनी जबरदस्त हार से ऊपर नहीं उठ पा रही है। आपसी मन-मुटाव व दलगत नीति से ऊपर उठकर कम से कम शिष्टाचार के नाम पर प्रधानमंत्री को इस समारोह के लिए निमंत्रण भेजा जाना चाहिए था। लेकिन कांग्रेस ऐसा करना भी उचित नहीं समझी। जानकार बताते हैं कि कि विरासत पर सियासत की शुरुआत 31 अक्टूबर, 2014 को ही शुरू हो गयी थी। 31 अक्टूबर को सरदार बल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन के साथ-साथ इंदिरा गांधी का शहादत दिवस भी होता है। एक तरफ सरकार ने 31 अक्टूबर को पटेल के जन्मदिन को बड़े ही धूमधाम से मनाया तो वहीं इंदिरा गांधी के शहादत दिवस पर कुछ विशेष नहीं किया गया। इसका बदला नेहरू के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री को न्योता नहीं देकर पूरा किया जा रहा है। जबकि सरकार नेहरू जयंती को बाल स्वच्छता मिशन अभियान के रूप में पहले ही समर्पित कर चुकी है। 

                गौर करें तो कांग्रेस दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी के पद चिन्हों का अनुसरण कर रही है। बुखारी ने अपने बेटे सैयद शाबान को नायब शाही इमाम घोषित करने की रस्म (22 नवंबर) में पूरी दुनिया को तो आमंत्रित किया लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को न्यौता नहीं भेजा। हद तो तब हो गयी जब पता चला कि अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी इस अवसर पर निमंत्रण भेजा गया है लेकिन भारत के पीएम को न्योता नहीं भेजा गया। इसके बाद बुखारी के इस कदम की दुनियाभर में आलोचना की गयी। चूंकि अब नेहरू का मामला है तो स्वाभाविक है कि कांग्रेस की आलोचना तय है। इस कदम से कांग्रेस ने न केवल अपनी बल्कि भारत के सम्मान को भी ठेस पहुंचाने का कार्य किया है। यह सभी को समझना होगा कि किसी भी राष्ट्र नेता के नाम पर सम्मेलन करना उस राष्ट्र के लिए गौरव की बात है। लेकिन अपने ही देश के प्रधानमंत्री को नजरअंदाज करना कहीं न कहीं किसी व्यक्ति विशेष का अपमान नहीं वरन् राष्ट्र का अपमान माना जाता है। नरेंद्र मोदी किसी को पसंद हो या न हों, यह एक अलग बात है लेकिन राष्ट्र हित सर्वोपरि होना चाहिए।

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