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Kisanon Ko Rulata Bedardi Mausam

  किसानों को रूलाता बेदर्दी मौसम

निर्भय कुमार कर्ण

बादल की आंख-मिचैली पर किसानों की नजर इस उम्मीद से टिकी होती है कि काश बारिश हो जायेजिससे खेती की जा सके। लेकिन बादल उनकी उम्मीद को कभी पूरा भी करती है और कभी चकनाचूर भी। कभीबादल इतना बरस जाता है कि खेतों में लगे सारे फसल चैपट हो जाते हैं तो कभी आंख-मिचैली का खेल खेलकरबादल आसमान में गायब हो जाता है। कहीं इतनी बारिश हो जाती है कि बाढ़ ही बाढ़ तो कहीं यह न बरसकर सूखाला देती है। ऐसे में किसान आखिर क्या करें? इस बेदर्दी मौसम का सामना कैसे करे?

कुछ लोगों के लिए बारिश केवल मजे के लिए होता है तो कुछ के लिए खेल लेकिन किसानों के लिएबारिश जीवन-मरण का प्रश्न होता है। प्रत्येक वर्ष यह देखा जाता रहा है कि बारिश अपने औसत स्तर से भी कमबरसने लगी है और वह भी अपने समय पर नहीं बल्कि बिन मौसम बरसात होती है जिससे खेती को खासानुकसान पहुँचता है और देश को महंगाई जैसे भीषण समस्या से जूझना पड़ता है। ध्यान देने वाली बात है कि भारतमें सूखे का ऐलान तब किया जाता है, जब पूरे मानसून-काल में सामान्य से दस प्रतिशत कम या इससे भी कमबारिश होती है और वह प्रभावित क्षेत्र देश का कुल क्षेत्र को 20-40 प्रतिशत होता है। उत्तर पश्चिम भारत में सूखासबसे ज्यादा है। अब तक उत्तर प्रदेश, उत्तराख्ंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू कश्मीर एवंहिमाचल में सामान्य से 37 फीसदी कम बारिश हुई है। पूर्वोत्तर में 24, दक्षिण में 22 तथा मध्य भारत में 19प्रतिशत कम बारिश हुई है। अभी तक पूरे देश में सामान्य से 25 फीसदी कम बारिश दर्ज हुई है। यथार्थ यह कि हमफिर से सूखा की ओर कहीं कदम तो नहीं बढ़ा रहे हैं?    

किसान न केवल गरीब होते हैं बल्कि यदि किसी बार किसी कारणवश खेतों में फसल न हो या फसलबरबाद हो जाए तो उनके खाने के लिए रोटी के लाले पड़ जाते हैं। ऐसे में किसान पंप सेट लगाकर खेती करे या फिरखाने का जुगाड़ करे? यदि खेती में लगी लागत भी ऊपर नहीं हो पाता है तो किसान कर्ज के बोझ में डूबते चले जातेहैं और अंत में ये आत्महत्या जैसे क्रूर कदम उठाने से भी नहीं हिचकते। वर्ष 1995 से 2011 के दौरान आत्महत्याकरनेवाले भारतीय किसानों की संख्या 2,90,740 था। यानि कि प्रत्येक 37 मिनट में एक भारतीय किसानआत्महत्या करता है। इससे हताश व परेशान किसानों की मनोदशा को आसानी से समझा जा सकता है। 

किसानों के घाव पर मरहम लगाने के लिए सरकार की योजनाएं तो कई है लेकिन इतना कारगर नहीं किखेती बिना परेशानी के कर सके और देश को खाद्य पदार्थाे से संपन्न कर सके। यही वजह है कि सभी देश एक-दूसरे के खाद्य पदार्थाे पर आश्रित होने लगे है। प्रत्येक देश हरेक साल दूसरे देशों से अनाज, दाल सहित अन्यखाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान करते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए काफी राहत भी प्रदानकिया है और साथ में सुझाया है कि पानी की प्रत्येक बूंद का उपयोग किया जाना चाहिए। बारिश के पानी कोजमाकर उपयोग में लाना चाहिए। वहीं भारत के पड़ोसी देश नेपाल में कृषि की हालत और भी दयनीय है। यहां केकिसानों के लिए न तो सरकार की ओर से कोई विशेष मरहम है और न ही कारगर उपाय। ऐसे में किसान खेतीछोड़कर मजदूरी करने में लग जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर दूसरे शहरों और देशों की ओर पलायन करने से भीनहीं चूंकते। कमोबेश यही हालत अन्य देशों की भी है जहां गरीबी, भूखमरी ज्यादा है। भारत में ही मानसूनी मौसममें करीब तीन करोड़ लोग अस्थायी तौर पर गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। यह बात पिछले वर्ष मुख्यसांख्यिकीय एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव टीसीए अनंत द्वारा यहां के 18 राज्यों आंध्रप्रदेश, असम,बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा,पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में गरीबी में मौसमी उतार चढ़ाव के विश्लेषण मेंयह बात निकल कर आयी।

किसान के कंधों पर ही दुनिया टिका है जो सभी को खाद्य आपूर्ति कराता है लेकिन यदि किसान केआंखों में खून के आंसू दिखाई दे तो समझिए इस मानव जगत के लिए और क्या विडंबना हो सकती है। यह भीविदित है कि इन सभी के जिम्मेदार भी हम हैं। पर्यावरण का नुकसान हमारे पांव पर कुल्हाड़ी मारने के समान है।जिसके कारण जलवायु परिवर्तन ने मौसम को विकृत कर दिया है फिर भी हम जलवायु परिवर्तन को सुधारने केबजाय बिगाड़ने में लगे हैं। ऐसा नहीं है कि इसे पटरी पर वापस लाने के लिए प्रयासरत नहीं है लेकिन सुधारने वालोंसे कहीं ज्यादा बिगाड़ने वालों की संख्या अधिक है जिससे बात नहीं बन पा रही और लगातार पर्यावरण कोनुकसान पहुंच रहा है। लगातार कम होते जंगल, घरों-कारखानों के लिए जंगलों का जमीन में तब्दील होनालगाताार ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहा है। बेमौसम बरसात और कड़कती धूप ने मानव जगत के जीवन को अस्त-व्यस्त कर रखा है। ऐसे में हमें प्रकृति के प्रति सावधान और सजग रहकर इसका संरक्षण करने जैसे कार्यों परविशेष ध्यान देना होगा।

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