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Bihar Sarkar Ki Niyat evam Niti par SAWAL


       बिहार सरकार की नियत एवं नीति पर सवाल

निर्भय कुमार कर्ण

                   आज-कल बिहार की मीडिया ‘इंसेफलाइटिस’बीमारी से संबंधित समाचारों से अटा पड़ा रहता है। ऐसा कोई दिन नहीं जिस दिन यह सुनने को न मिले कि इंसेफलाइटिस से बच्चों की मौत नहीं हो रही है। यह बीमारी प्रत्येक साल ग्रीष्म ऋृतु में बिहार में कहर बरपाती है और यह कोई एक-दो साल से नहीं बल्कि कई वर्षों से बच्चों को लपेटे में लेती रही है। यहां आपको बताते चले कि इंसेफलाइटिस बीमारी प्रायः बच्चों को अपने चंगुल में फंसाती है। अभी तक बिहार में इससे मरने वालों की संख्या 141 पार कर चुकी है और न जाने यह आंकड़ा इस वर्ष किस रिकार्ड को छुएगी। जबकि आंकड़ों से हटकर कईयों की मौत होती रहती है जिसका आंकड़ों से कोई लेना-देना नहीं होता। वहीं बिहार में नीतीश की सरकार पिछले 9 सालों से लगातार राज कर रही है और पूरे भारत में वह सुषासन के नाम से भी जाने जाते हैं लेकिन जिस प्रकार इंसेफलाइटिस बीमारी से मौत का सिलसिला साल दर साल जारी है उससे कहीं न कहीं पहले तो नीतीश और अब जीतन राम मांझी सरकार की नियति पर सवाल उठता है। यदि पिछले नौ सालों में इस पर काम किया गया होता तो आज इंसेफलाइटिस की भयावहता इतनी नहीं होती या शायद बिल्कुल ही नहीं होती। ऐसे में सरकार की नियति एवं नीति पर सवाल उत्पन्न होना लाजिमी है। बिहार की जनता इस अबूझ पहेली में खुद भी उलझी हुई है। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि प्रत्येक साल जिस समस्या से बिहार के बच्चे ग्रसित होते हैं और मौत के गाल में समा जाते हैं, आखिर नौ सालों में भी क्यों नहीं इस समस्या का हल निकल सका है?

               देखा जाए तो बिहार ने पिछले 9 सालों में काफी तरक्की किया है। इसे न केवल बिहार की जनता अपितु केंद्र सरकार भी महसूस करती है। सड़क से लेकर रोजगार तक में संतोषजनक प्रदर्शन नीतीश सरकार का रहा है लेकिन इंसेफलाइटिस बीमारी से संबंधित कोई भी नीति ठोस नहीं बन पाया जिससे यहां के बच्चे भय से ग्रसित रहते हैं। न कोई टीकाकरण की विशेष व्यवस्था की गयी और न ही अस्पतालो में इन मरीजों के लिए कोई विशेष आवश्यक इंतजाम। बिहार के किसी भी सरकारी अस्पतालों में बदइंतजामी का आलम आसानी से महसूस किया जा सकता है। यह विदित है कि बिहार गरीब राज्यों में से एक है। ऐसे में बिहार की जनता सरकारी अस्पतालों की ओर ही रूख करती है। मध्यम एवं उससे ऊपर के लोग प्राइवेट अस्पतालों में बच्चों का ईलाज कराकर अपने बच्चों की जान बचाने के लिए संघर्ष करते हैं लेकिन उन्हें भी हर हमेशा इस बात का डर बना रहता है कि कहीं फिर से इंसेफलाइटिस उनके बच्चों पर कहर न बरपा दे। अचलपुर के निवासी रितेश यादव ने बताया कि इंसेफलाइटिस से प्रत्येक वर्ष बच्चों की मौत होती रहती है लेकिन राज्य सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। ऐसे में राज्य सरकार पर सवाल उठना न केवल प्रासंगिक है बल्कि उतना ही शर्मनाक भी।

                   फिलहाल लोकसभा चुनाव के बाद बिहार सरकार राजनीति में कुछ इस कदर फंसी पड़ी है कि वह इससे बाहर निकल ही नहीं पा रही है। लंबे अरसे बाद जदयू को राजद का समर्थन लेना पड़ा और इसी के बदौलत जदयू राज्यसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करने में सफल रही है और साथ में सरकार बचाने में भी। किसी ने यह उम्मीद नहीं किया था कि जो नीतिश कुमार लालू यादव को सत्ता से बेदखल कर जंगल राज से बिहार को मुक्ति दिलाई वही लालू और नीतीश एक खेमे में आ गए। कभी दोनों एक-दूसरे के धूर-विरोधी थे जिसके बदौलत नीतीश कुमार भाजपा के सहयोग से बिहार में सरकार बना पाये। बिहार की जनता भी इस नए जोड़ी से पशोपेश में है कि आखिर किस पर विश्वास किया जाए, कहीं बिहार में फिर से जंगल राज दुबारा दस्तक न दे दे! इसी उधेरबुन में राज्य में कई सारी योजनाएं धीमी गति से चल रही है और इंसेफलाइटिस बीमारी पर नियंत्रण के कार्यों पर भी असर देखा जा रहा है।

             जहां सरकार को इंसेफलाइटिस से बचने के लिए ठोस कदम उठाकर काम करना चाहिए था। वहीं कुछ ऐसी नीति बनायी जाती जिससे बच्चे सहित माता-पिता इंसेफलाइटिस से भयमुक्त होकर जीवन गुजर-बसर कर पाते। इस नीति के अंतर्गत टीककारण पर जोर देना एक सफल उपाय हो सकता है साथ ही सभी सरकारी अस्पतालों में इस बीमारी की ईलाज के लिए दवा सहित सारी सुविधाएं निःशुल्क मौजूद हो जिसे सभी मरीज आसानी से प्राप्त कर सके।
         
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