MATDATAON KE LIYE ETIHASIK KADAM
सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव आयोग को वोटरों को ईवीएम में ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प देने का ऐतिहासिक फैसला स्वागत योग्य है। चूंकि यह फैसला अधिकतर राजनैतिक दलों को रास नहीं आ रहा लेकिन गैर राजनीतिक संगठन एवं संस्थाएं इसे लोकतंत्र को मजबूत करने और चुनावी सुधार के लिए जारी कवायद का हिस्सा करार दे रहे हैं। वहीं आम जनता भी इस फैसले से काफी उत्साहित व रोमांचित दिख रही है।
इस
सुविधा से पहली बार हिंदुस्तानी मतदाता ‘इनमें से कोई नहीं का’ विकल्प चुन सकेगा। वोटर
पर अब यह बाध्यता नहीं रहेगी कि पार्टी द्वारा थोपे गए नेताओं में से किसी एक को वोट
करे। अब वोटर पर से दबाव खिसक कर राजनैतिक दलों व उम्मीदवारों पर चला गया है। जिसके
कारण राजनैतिक दलों को नुकसान होने की संभावना है। ईवीएम की एक नई बटन से देश को चलाने वाले नेताओं को अपनी और अपनी पार्टी की
जन हैसियत का पता भी चल सकेगा।
हाल
में न्यायपालिका द्वारा लिए गए कई फैसले से स्पष्ट होता है कि जो कार्य सरकार को करना
चाहिए था वह न्यायपालिका को मजबूरन करना पड़ रहा है। चुनाव आयोग 10 दिसंबर 2001 को
ही ईवीएम में उम्मीदवारों के नाम के बाद ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प देने का प्रस्ताव
सरकार को भेजा था, लेकिन इन 12 सालों में इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया। आखिरकार सुप्रीम
कोर्ट ने वोटरों को यह अधिकार देने वाला फैसला सुनाया और चुनाव आयोग को इस प्रकार की
व्यवस्था ईवीएम मशीन में करने के निर्देश दिये।
इस
निर्देश के बाद लोगों के सुझाव व उलझनें सामने
आने लगे हैं। कुछ का मानना है कि इस व्यवस्था को चुनाव आयोग कैसे लागू कराए? उसमें
कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं में यह जरूरी है कि इस व्यवस्था के साथ चुनाव परिणाम आने पर
सभी उम्मीदवारों को नापसंद करने वालों की मतगणना होनी चाहिए। यदि रिजेक्ट करने वाले
मतों की गिनती सर्वाधिक हो तो वह चुनाव निरस्त करके दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए।
दोबारा चुनाव कराने में जिन्हें नापसंद कर दिया गया हो उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार
न दिया जाए और नये उम्मीदवार मैदान में हों। दोबारा चुनाव मे जिस उम्मीदवार को डाले
गये मतों का 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलते हैं उसे निर्वाचित करने का प्रावधान किया
जाए तो इस निर्णय की सार्थकता मानी जाएगी। वहीं कुछ का मानना है कि इस सुविधा का नकारात्मक
असर न पड़े इसलिए सभी को वोटिंग करना अनिवार्य किया जाए।
बदलते दौर में चुनाव आयोग के द्वारा चुनाव को निष्पक्ष
और साफ-सुथरा बनाने के लिए उठाये जा रहे कदम सराहनीय है। इससे वोटरों में लोकतंत्र
पर खोया हुआ विश्वास फिर से बहाल हो सकता है। देखा जाए तो लोकतंत्र में अभी और भी सुधार
होने की जरूरत है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला चुनाव सुधार के साथ-साथ
राजनीतिक सुधार की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, बशर्ते इसे लोकतांत्रिक
तरीकों के साथ ही लागू किया जाए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चुनाव सुधार की प्रक्रिया
से गुजारने का जो बीड़ा उठाया है, वो देश की सेहत के लिए शुभ संकेत नजर आ रहा हैं लेकिन
इसे सार्थक करने का बीड़ा तो हम सभी मतदाताओं को ही उठाना होगा।
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