Kshanik Khushi Matvapurn hai ya fir Maut ? ( On the occasion of World Anti Tobacco day- 31st May) - सुस्वागतम्
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Kshanik Khushi Matvapurn hai ya fir Maut ? ( On the occasion of World Anti Tobacco day- 31st May)

(31 मई- विश्व तंबाकू निषेध दिवस )
क्षणिक खुशी महत्वपूर्ण है या फिर मौत?
निर्भय कर्ण

            ‘‘यार, खैनी (तंबाकू)
खाने का अपना ही मज़ा है। इसे खाए बिना मूड ही नहीं बनता’’... कुछ ऐसी बातें अक्सर आपने सुना होगा। देखा जाए तो इसका सेवन करने वाले लोगों की दिनचर्या तंबाकू से ही शुरू होती है और समापन भी। यानि कि तंबाकू इसके उत्पादों का भरपूर मजा लिया जाता है। तंबाकू का इस्तेमाल हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, सिगार, गुटखा, पान आदि में किया जाता है। चूंकि यह लोगों को तत्कालीन क्षणिक खुशी जोश जरूर देती है लेकिन यह भी याद रखें कि तंबाकू उत्पादों के सेवन से ही प्रतिवर्ष दुनियाभर में लगभग 60 लाख लोगों की मौत हो जाती है। ऐसे में यह बड़ा सवाल कि क्षणिक खुशी ज्यादा महत्वपूर्ण है या मौत?

            दुनियाभर में लोग जबरदस्त रूप से तंबाकू एवं इसके उत्पाद के आदी हैं। भारत में ही 35 फीसदी वयस्क तंबाकू का सेवन करते हैं जिसमें 47.9 फीसदी पुरुष शामिल हैं तो वहीं महिलाएं भी 20.3 फीसदी के साथ पुरुषों का साथ देने में पीछे नहीं है। शहरी महिलाओं के लिए तो सिगरेट पीना फैशन और आधुनिकता का प्रतीक माना जाने लगा है। युवाओं में इसका सेवन शौक के रूप में शुरु किया जाता है जो आगे चलकर लत बन जाती है। भारत में तंबाकू उत्पाद पान मसाला के एक विज्ञापन को आपने जरूर देखा-सुना होगा जिसमें कहा जाता है किऊंचे लोगों की ऊंची पसंद- पान बहार फिल्मों में सिगरेट के इस्तेमाल को लोग अपनी जिंदगी में उतारने लगे हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि सिगरेट पीने से उनकी शान में इजाफा यानि कि व्यक्तित्व में निखार आता है। माना कि थोड़ी देर के लिए इसके सेवन से आपके शान में बढ़ोतरी होती है लेकिन यह आपको मौत के द्वार तक पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तंबाकू सेवन से प्रत्येक 6 सेकेंड पर लगभग एक व्यक्ति की मौत हो जाती है और यदि यह इसी तरह जारी रहा तो 2030 तक तंबाकू से होने वाली मौतों की संख्या प्रत्येक वर्ष 80 लाख से भी अधिक हो जाने की आशंका है। इन आंकड़ों को देखकर आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि तंबाकू एवं इसक उत्पादों के शौकीन लोगों को क्षणिक खुशी मंजूर है या फिर क्या?
           
इतना नुकसान होने के बावजूद लोगों का इसके सेवन के प्रति दिवानगी केवल आश्चर्यजनक है बल्कि चिंतित भी करती है। जहां सरकार इसकी रोकथाम के लिए अनेकों जागरूक अभियान चलाती है वहीं दूसरी ओर इन अभियानों का तंबाकू सेवन करने वाले लोगों पर कोई खास असर नहीं पड़ता। सभी तंबाकू उत्पादों परचेतावनीजरूर लिखा होता है लेकिन वह चेतावनीकाला अक्षर-भैंस बराबरकहावत को चरितार्थ करता है। लोग समझते-बूझते हुए भी इन चेतावनी को तवज्जो नहीं देते। वहीं इस मामले में सरकार का दोहरा मापदंड देखने को मिलता है। एक तरफ इसे रोकने के लिए सरकार द्वारा जागरूक अभियानों पर करोड़ों खर्च किया जाता है तो दूसरी तरफ इसे पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने या इसके उत्पादन पर रोक लगाने से पीछे हटती रहती है। जहां कहीं इसके उत्पादों पर प्रतिबंध है वहां इसकी हालत क्या है, यह किसी से छुपी नहीं है। नियम-कानून तक पर रखकर लोग धड़ल्ले से इसे क्रय-विक्रय करते हैं।

वास्तविकता यह है कि इन उत्पादों से सरकार को जबरदस्त राजस्व प्राप्त होता है। तम्बाकू विरोधी अभियानों पर विश्व के देश जितना खर्च करते हैं, उससे पाँच गुना ज्यादा वे तंबाकू पर टैक्स लगाकर कमाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो जितना खर्च तंबाकू नियंत्रण पर किया जाता है उससे 175 गुना कर के रूप में तो सरकारी की कमाई हो जाती है। जबकि इससे होने वाली बीमारियों के खर्च के बारे में टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबई के वरिष्ठ चिकित्सक पंकज चतुर्वेदी बताते हैं कि तंबाकू से होनेवाली सिर्फ तीन बड़ी कैंसर, दिल और फेफड़ों की बीमारियां पर सालाना 30,000 करोड़ रूपए खर्च होते हैं जबकि तंबाकू से सरकार को जो राजस्व मिलता है वह इसका छठवां हिस्सा भी नहीं है। आर्थिक दृष्टि से देखा जाये तो भारत में तम्बाकू एक महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद है और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी अहम भूमिका है। तम्बाकू बोर्ड के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष 72 करोड़ 50 लाख किलो तम्बाकू का उत्पादन होता है। तम्बाकू निर्यात की दृष्टि से ब्राजील, चीन, अमरीका, मलावी और इटली के बाद भारत छठवें स्थान पर है। वहीं तम्बाकू सेवन के मामले में भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा है। तंबाकू जहां एक ओर बड़ी मात्रा में राजस्व देती है तो वहीं लाखों लोगों को रोजगार भी मुहैया कराती है। भारत में ही लगभग 20 लाख लोगों का जीवन खेती से चलता है जिसमें कृषक से लेकर व्यापारी आदि शामिल हैं। देखा जाए तो बिहार के समस्तीपुर जिले में तंबाकू की खेती प्रमुख फसल के रूप में होती है।

वैसे तो खुले जुबां से सभी तंबाकू की हमेशा से आलोचना करते रहे हैं इसके बावजूद दिन--दिन यह प्रचलित होता गया और आज धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल होने लगा है। नगदी फसल के रूप में इसे उगाए जाने के बाद से तंबाकू भूरा सोना के नाम से भी जाना जाने लगा। चूंकि धूम्रपान 5000-300 . पू. के प्रारंभिक काल में शुरू हुआ और दुनियाभर में 1500 ईसवी के अंतिम दौर में प्रचलित हुआ। निकोटियाना प्रजाति की वनस्पति के पत्तों को सुखा कर नशा करने के लिए तम्बाकू तैयार किया जाता है। ज्ञात हो कि तम्बाकू में कैंसर पैदा करने वाले तत्व निकोटीन, नाइट्रोसामाइंस, बंजोपाइरींस, आर्सेनिक और क्रोमियम अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं जिनमें निकोटिन, कैडियम और कार्बनमोनो आक्साइड स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। इससे इतना नुकसान होने के बावजूद भी विश्व के मात्र 24 देश जहां विश्व की 10 प्रतिशत आबादी बसती है, पूर्ण रूप् से तंबाकू को किसी प्रकार का विज्ञापन, प्रचार आदि के लिए रोक लगा चुकी है। बाकी अन्य देश राजस्व, रोजगार आदि की लालच में ऐसा करने से गुरेज करते रहे हैं।

तम्बाकू जनित रोगों में सबसे ज्यादा मामले फेफड़े और रक्त से संबंधित रोगों के हैं जिनका इलाज केवल महंगा बल्कि जटिल भी है। इसके अलावा तम्बाकू के सेवन से आँख, कान, मुँह, दाँत, मांसपेशियां, जोड़, मस्तिष्क, गला, हृदय, गुर्दे, पैन्कियाज, पेट, प्रजनन अंगों एवं अन्य से संबंधित बीमारियां होती है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान की एक रिपोर्ट मे बताया गया कि पुरुषों में 50 फीसदी और स्त्रियों में 25 फीसदी कैंसर की वजह तम्बाकू है।

लोगों को तंबाकू इसके उत्पाद से होने वाली बीमारियों से बचन बचाने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि तम्बाकू, धूम्रपान, नशा, अल्कोहल इत्यादि को छोड़ने के लिए मजबूत विल पावर का होना बेहद जरूरी है लेकिन नामुमकिन कुछ भी नहीं। हालांकि धूम्रपान की लत छुड़ाने के लिए आज के समय में कई चिकित्सीय विधियां उपलब्ध है। जहां एक ओर लोगों को सतर्क और जागरूक होने की आवश्यकता है वहीं सरकार को तंबाकू एवं इसके उत्पादों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने जैसा कठोर कदम उठाने की भी सख्त जरूरत है। इस प्रकार की मांग कई संगठनों एवं पीडि़तों ने कई बार किए हैं लेकिन यह मांग आज तक नहीं मानी गयी है। इससे जुड़े लोगों को अन्य रोजगार प्रदान कर तंबाकू उत्पादन से मुख मोड़ने जैसे कामों को प्रमुखता देनी होगी।


यह हमेशा याद रखें कि अगर आग पर चलेंगे तो आज नहीं तो कल पैर जरूर जलेंगे और छाले भी आपको ही पड़ेंगे। उसकी तपिश से आप अकेले नहीं झेलेंगे अपितु आपके घर वाले भी उसमें झुलसेंगे। आवश्यकता अब इस बात की है कि हम सब आगे आकर तम्बाकू निरोध दिवस पर तम्बाकू के प्रयोग के खिलाफ माहौल तैयार करें और नयी पीढ़ी को इसके प्रभावों से बचाएं।
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